Description
विषमताओं, विसंगतियों और विदृ्रपताओं से अटी है आज की जिंदगी। ऐसे अनुभवों को अनुभूत कर, प्रहारात्मक तरीके से प्रस्तुत करना, व्यंग्य कहा जाता हैं साथ ही मानव की कुंठाओं एवं जीवन-मूल्यों में स्खलन के प्रति भी फिक्रमंद होता है व्यंग्यकार। उसकी सोच का पैनापन पाठक के मन को कभी कचोटता है, तो कभी उसका फक्कड़ मिजाज पाठक के मन को गुदगुदा जाता हैं इसीलिए व्यंग्य के साथ हास्य का जुड़ाव हो गया है।
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