Description
“थोड़ा सा ईमान’ शीर्षक से वर्ष 2003 में आए अशोक
रावत के पहले गृजुल संग्रह के बाद प्रकाशित इस गृजुल
संग्रह की गृजलें इस बात की प्रमाण हैं कि इन 5 वर्षों में
अशोक रावत की रचनात्मकता ने अनुभव और अभिव्यक्ति
की नई ऊँचाइयों को छुआ है। इस अवधि में गृजुलों को
लेकर उनका ऑब्जुरवेशन और उनकी प्रतिबद्धता ज़्यादा
मजबूत और स्पष्ट हुई है। बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से
भी उन्होंने अपनी गृजुलों को नई धार दी है।
वे मात्रा की तुलना में गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने वाले
गृजुलकार हैं। एक-एक गृजुल पर घंटों, दिनों, हफ्तों,
महीनों और कभी-कभी तो सालों तक परिश्रम करते देखे
गए हैं। जैसे एक मूर्तिकार छेनी की सथी चोटों से धीरे-धीरे
एक लंबी अवधि के बाद एक बेजान पत्थर को कोई
साकार स्वरूप दे पाता है, ठीक वही स्थिति अशोक रावत
की रचनाओं की भी हेै। इन गृजुलों को पढ़कर हम
आह्लादित होते हैं, रोमांचित होते हैं और कई बार गूंगे के
गुड जैसा स्वाद भी हमें प्राप्त होता है।
वे न केवल अपनी रचनात्मकता को सार्थकता देना चाहते हैं
बल्कि हिंदी गूजूल को भी समान रूप से स्थापित होते
देखना चाहते हैं। इसके लिए वे तमाम साहित्यिक ख़तरे
उठाते हुए खरी-खरी बात करने के लिए भी जाने जाते हैं।
संग्रह की गृजुलों में सामाजिक यथार्थ का तीखापन तो हे
ही, समाज की भाँति-भाँति की विसंगतियों पर एक
रचनाकार-सुलभ टिप्पणी और उसमें एक कलात्मक
हस्तक्षेप भी है।
कमलेश भट्ट कमल