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कवि ने कहा: अशोक वाजपेयी / Kavi Ne Kaha : Ashok Vajpayee

190.00 161.50

ISBN : 978-93-83233-32-8
Edition: 2014
Pages: 134
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Ashok Vajpayee

Category:

लगभग एक हजार लिखी गई कविताओं से कुछ चुनना स्वयं कवि के लिए मुश्किल काम है। एक अधसदी भर कविता लिखने और कविता के लिए अपने समय और समाज में थोड़ी सी जगह बनाने की कोशिश करते हुए उसकी रुचि और दृष्टि बदलती रही है। फिर अगर आप कविता लिखने के अलावा आलोचना भी लिखते हों, जो कि मैं करता रहा हूँ, तो मुश्किल और बढ़ जाती है। आपको रुचि और दृष्टि की अपार बहुलता से निपटना पड़ता है। आप कितने ही तीख़े आत्मालोचक क्यों न हों जो आपको प्रिय लगता हो वह जरूरी नहीं कि महत्त्वपूर्ण भी हो या कि वस्तुनिष्ठ ढंग से ऐसा माना जा सके। स्वयं कवि के अपनी कविता को लेकर भी पूर्वग्रह होते हैं और उनमें से कई जीवन भर उसका साथ नहीं छोड़ते। इस संचयन में वे सक्रिय नहीं होंगे इसकी संभावना नहीं है। फिर भी प्रयत्न यह है कि कई रंगों की कविताएँ उसमें आ जाएँ।
बाव़फ़ी सब तो कविताएँ ही अपने ढंग से कहेंगी: उनके बारे में कवि को संभव हो तो चुप ही रहना चाहिए। अकसर कविताएँ कवि से अधिक जानती हैं_ अपने रचयिता से। इतना भर इस मुव़फ़ाम पर कहा जा सकता है कि ज्यादातर एक ऐसे समय और समाज में जो कविता से कोई उम्मीद नहीं लगाता और अकसर उसकी अनसुनी-अनदेखी ही करता है, कविता में विश्वास बना रहा है।
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