सुन मुटियारे
‘सुन मुटियारे’ उपन्यास उस तरुणी (मुटियार) की कहानी है, जो जन्मी-पली पंजाब के गाँव में और पढ़ी-गुनी देश की राजधानी में। पंजाब भी ‘बंटवारे’ से पहले का पंजाब-जब अनबँटी जमीन थी और अनबँटे ही दिल थे…जब खेतों में भरपूर अनाज था और दिलों में भरपूर प्यार था…जब ‘पंज दरिया’ की धरती गाती-नाचती रहती थी।
कथानक की धुरी तो है ‘मुटियार’, लेकिन उसके इर्द-गिर्द एक भरा-पूरा परिवार है, समाज है, जिसमें विविध पात्र हैं—गाँव के भी, शहर के भी। उनकी हँसी और आँसू, समस्याएँ और समाधन, सुख और दुःख—सब कुछ ऐसे साथ जुड़ा चला आता है, जैसे कवि के शब्दों में—‘जस केले के पात में छुपे पात दर पात।’ इस प्रकार कथानक का मुख्य पात्र एक नहीं रहता, बल्कि अनके पात्रों के रूप में प्रकट होता हैं अतएव यह कहानी जीवन के विराट् पट पर रंग-बिरंगे धगों से बुनी रंगीन चादर ‘फुलकारी’ की तरह उभरती है। इसका एक सिरा पंजाब के गाँव से जुड़ा है तो दूसरा राजधानी के महानगर से। इसीलिए कहानी में गाँव के लोकगीत और पंजाबी भाषा के शब्द स्वयमेव ही आ गए हैं, जैसे सावन की घटाओं के साथ मोर का नृत्य और कोयल की कुहुक आ जाती है।
—संतोष शैलजा