स्त्री जागरण और स्त्री-गरिमा को लेकर गुप्त जी ने जो रचनाएं लिखीं, वे आज की जरूरत भी हैं, भले ही भिन्न रूप रंग तेवर में। उन्होंने तभी महसूस कर लिया था कि स्त्री की समस्या सबसे पुरानी, सबसे जटिल लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है। गुप्त जी ने बड़े घर की नारियों से लगाकर साधारण घर-संसार की ऐसी नारियों का सृजन और पुनर्सृजन किया जो समाज के बहुकोणीय स्वरूप को प्रकट करती हैं। उनके माध्यम से गुप्त जी ने समाज, संस्कृति और मानवीय गुणावगुण रेखांकित किए हैं। उनके स्त्री-चरित्रों की विविधता, उनके अभिप्राय और मर्मस्पर्शिता समाज को शील और आचरण का आईना दिखाती है।
Sale!
rashtrakavi ka stri-vimarsh
₹150.00 ₹127.50
ISBN: 978-81-7016-746-4
Edition: 2010
Pages: 104
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Prabhakar Shrotriya
Category: Criticism