प्रेम संसार की सबसे सुखद अनुभूति है। इस भावना से लबरेज व्यक्ति, जिसका हृदय प्रेम में सराबोर रहता है। वह उसके लिए सब कर जाता है। उचित भी, अनुचित भी। इसमें वह अपना लाभ-हानि, मान-अपमान नहीं देखता। स्वाभिमान तो सबसे पहले उसके चरणों में रख देता है। उसका ध्येय बस इतना होता है कि कैसे भी वह अपने प्रिय के सभी कष्ट मिटा दे। उसको सुख दे। संसार का हर सुख। स्वयं को भी मिटाकर। वह इसकी भनक भी उसको न लगने दे, कि उसके लिए वह किन अंगारों पर से गुजरा। अगाध प्रेम से भरी, इस उपन्यास की नायिका, सारिका ने यही किया।
खैर, प्रेम अपने आदर्श रूप में तब होता है, जब आप अपने लिए नहीं, वरन उसके लिए सोचते हैं, जिससे आप प्रेम करते हैं। कितु किसी सीमा/मर्यादा का उल्लंघन किए बगैर। बिना किसी तीसरे को कष्ट पहुंचाए। बिना किसी को मोहरा बनाए। प्रेम विकृत तब हो जाता है, जब मर्यादाएं टूटती हैं। प्रेम विध्वंस का कारण तब बनता है जब इसका उपयोग निज हेतु किया जाए। तभी, प्रेम पुजारी न रहकर, प्रेमी संवेदनहीन आखेटक बन जाता है।
इस उपन्यास के मुख्य पात्र एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं, पर उस प्रेम में कौन कितना निष्कलंक रहा। कौन कितना अपने स्तर से गिरा, किसने कितना छल किया, किसने कितना प्रेम। कौन दोषी रहा, कौन निर्दाेष। कैसे बदली सबकी जिदगानियां। यह उपन्यास पढ़ने से ही पता चलता है।
कहानियों के जितने ताने-बाने होते हैं, वे कहीं भीतर ही हमारे अवचेतन में होते हैं। जिनको समय का चरखा अपने हिसाब से कातता है, जहाँ बुनावट भी आपके हाथ में नहीं होती। बस जोड़ दिए जाते हैं वे सिरे यूं ही। प्रेम आखेट में भी ऐसा ही कुछ लेखिका के साथ हुआ। कई वर्षों से मन के किसी कोने में कोई कुलबुलाहट-सी थी। या कहें एक रिक्त-सी कसमसाहट। जो समय-समय पर विचलित करती रहती थी।
एक इंसान के कई-कई मुखौटे होते हैं। कई तो अपने मुखोटों में सहज होते हैं। आप आसानी से नहीं समझ सकते, जब तक कि उसका कोई बड़ा कांड सामने नहीं आ जाता।
इस उपन्यास के मुख्य पात्र एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं, पर उस प्रेम में कौन कितना निष्कलंक रहा। कौन कितना अपने स्तर से गिरा, किसने कितना छल किया, किसने कितना प्रेम। कौन दोषी रहा, कौन निर्दाेष। कैसे बदली सबकी जिदगानियां। यह उपन्यास पढ़ने से ही पता चलता है।
कहानियों के जितने ताने-बाने होते हैं, वे कहीं भीतर ही हमारे अवचेतन में होते हैं। जिनको समय का चरखा अपने हिसाब से कातता है, जहाँ बुनावट भी आपके हाथ में नहीं होती। बस जोड़ दिए जाते हैं वे सिरे यूं ही। प्रेम आखेट में भी ऐसा ही कुछ लेखिका के साथ हुआ। कई वर्षों से मन के किसी कोने में कोई कुलबुलाहट-सी थी। या कहें एक रिक्त-सी कसमसाहट। जो समय-समय पर विचलित करती रहती थी।
एक इंसान के कई-कई मुखौटे होते हैं। कई तो अपने मुखोटों में सहज होते हैं। आप आसानी से नहीं समझ सकते, जब तक कि उसका कोई बड़ा कांड सामने नहीं आ जाता।