Description
‘एक पत्नी के नोट्स’ वैसे तो आजकल प्रचलित कहानी के वर्गीकरण के हिसाब से लंबी कहानी कहलाएगी; लेकिन यह कहानी से ज़्यादा किसी पॉपुलर फिल्म की स्क्रिप्ट के नज़दीक पड़ती है। हाथ आ जाने पर इस कहानी की रोचकता पाठक को बहा ले जाती है और इस बात की लगभग गारंटी है कि पाठक इसे एक बार में पूरा पढ़े बगैर नहीं छोड़ सकेगा। आजकल किसी भी पत्रिका में छपी लंबी कहानी को पढ़ने से पहले जिस तरह हिम्मत जुटानी पड़ती है, पाठकीय धैर्य और साहस का आवाहन करना पड़ता है, उसके ठीक उलटे इस कहानी में पहले वाक्य से ही मन लगने लगता है। कहानी शहरी पाठक के लिए है। वह सीधे शुरू होती है बिना भूमिका के। कहानी में संदीप है, जो आई.ए.एस. अधिकारी है और उच्च-मध्यवर्ग में संगीत, साहित्य, कला के बारे में जितनी सुरुचि अच्छे सामान्य ज्ञान, बढ़िया पुस्तकों, कैसेटों, म्यूज़िक, कंसर्ट और कल्चर इंडस्ट्री पर अद्यन नज़र रखने से बनती है, उतनी उसके पास है। अच्छी ज़बान हाज़िरजबाबी और आकर्षक व्यक्तित्व ऊपर से। बहरहाल निम्न मध्यवर्ग की गंभीर, सीधी, निश्छल लड़की कविता उसके तेज़ तर्रार ‘इनीशिएटिव’ के आगे समर्पित हो जाती है।
कहानी के विषय में ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है उसकी वस्तु। लेखिका व्यंग्य का इस्तेमाल चरित्राकंन के लिए लगभग एक पैने औज़ार की तरह करती है। साहित्य में जो कुछ भी ‘रोचक’ और ‘लोकप्रिय’ है, उसे मानमूल्यरहित घोषित करना हिंदी में एक आदत-सी है। लेकिन व्यंग्य की एक सी सधी हुई किंतु दबी-दबी सी धार चरित्राकंन के भीतर ही लेखिका के निस्संग और पैने मंतव्य को साफ तौर पर रख देती है।