असली ज्ञान शास्त्रें में नहीं है, बल्कि मनुष्य के अंदर है। शास्त्रें की रचना तो मनुष्य ने विभिन्न संदर्भों व परिस्थितियों में की है। इनमें विरोधाभास भी मिलेंगे। असली ज्ञान-शक्ति तो मनुष्य के अंदर छिपी है। यदि मनुष्य अपने आपको पहचान ले तो वह परमात्मातुल्य हो जाता है। ‘परत्मामा किसी सातवें आसमान पर विराजमान नहीं है। यह सारी सृष्टि परमात्मा का ही दुश्य रूप है। इसकी सेवा और विकास ही ईश्वर की सच्ची आराधना है।’ ‘मोक्ष के पश्चात् व्यक्ति किसी दूसरे लोक में नहीं जाता, वह इसी संसार में रहता है और साक्षी भाव से सारे कर्म करता रहता है, पर उनमें लिप्त नहीं होता।’ प्रस्तुत पुस्तक में अष्टावक्र के जीवन दर्शन, जो ‘अष्टावक्र गीता’ के नाम से प्रसिद्ध है, का रोचक व प्रेरक वर्णन है। लेखक ने इसके वैज्ञानिक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला है। -डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र
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Mahaan Tatvagyani Ashtavakra
₹595.00 ₹500.00
ISBN: 978-81-88466-38-2
Edition: 2023
Pages: 216
Language: Hindi
Format: Paperback
Author : Vinod Kumar Mishra
Category: Paperback