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Kyaa Naam Doon Tujhe….Ai Jindagi / क्या नाम दूँ तुझे…ऐ ज़िंदगी

400.00 295.00

ISBN: 9789391797041
Edition: 2021
Pages: 174
Language: Hindi
Format: Hardback

Author : Usha Yadav

Category:

इसी उपन्यास से एक अंश
उर्वशी पूरी तल्लीनता से, एकदम निश्चिंत होकर किसी से फोन पर बात कर रही थी। जाहिर है, रोगिणी के बिस्तर से उठने का उसे अंदेशा न था। तीनों पुरुष सदस्य घर से बाहर थे और माया अपना काम खत्म करके जा चुकी थी। अपने ऐकांतिक साम्राज्य की एकछत्र स्वामिनी बहूरानी पूरी तन्मयता से बतरस में निमग्न थीं। कंठस्वर इतना तेज था कि दरवाजे पर लहराते परदे को चीरता हुआ गलियारे में स्पष्ट सुनाई दे रहा था।
शब्द नहीं, जैसे दहकता अंगारा जयलक्ष्मी के कानों में पड़ा, ‘सुनती हो माँ, आज बुढ़िया बुखार का ढोंग रचकर बिस्तर पर पड़ी है। कोई बुखार-वुखार नहीं, मुझे रसोईघर में भेजने की साजिश रची थी। पर मैंने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली हैं। ऐसा दाँव चला कि बुढ़िया चित हो गई।’
उधर से क्या कहा गया, यह तो पता नहीं, कितु उर्वशी का अट्टहास बाहर तक सुनाई दिया, ‘बिलकुल ठीक कहा, माँ। तभी तो मैंने तुम्हारे दामाद को भेजकर हलवाई के यहाँ से पूरी-सब्जी मँगवा ली थी।—रसोईघर में घुसती है मेरी जूती!’
क्षणिक अंतराल के बाद पुनः उर्वशी की आवाज सुनाई दी, ‘तू फिक्र न कर माँ, तेरी बेटी बहुत समझदार है। सास-ससुर के साथ कैसा सलूक करना चाहिए, अच्छी तरह जानती है।’ जयलक्ष्मी के भीतर इससे ज्यादा सुनने की ताब न थी। कितु पाँवों को घसीटकर आगे ठेलने की ताकत भी तो चुक गई थी। विवश भाव से वह सुने जा रही थी, ‘ओह माँ, तू चिता क्यों करती है? तेरी नसीहत का हर्फ-हर्फ मैंने कलेजे में उतारा है। तुम्हारा दामाद मेरे इशारे पर उठने-बैठने वाला भेड़ा बन चुका है। इसके बाद मुझे किसी और हथियार की दरकार है ही नहीं। उसे इस्तेमाल करके बहुत जल्दी अपनी योजना पर अमल करूँगी। जीत हासिल न कर सकी, तो तेरी बेटी क्या रही!’

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