बचपन से लेकर जवानी तक संचिता ने अपनी चाहतों को दबाया था…अचानक सपनों का राजकुमार आया तो, मगर हकीकत में उसकी दुनिया को रौंदता चला गया। वो किस हद तक बर्दाश्त करती, विद्रोह कर बैठी…विद्रोह नहीं, अपनी सुरक्षा और बेटी के भविष्य के लिए मगर उसमें भी आत्मसम्मान है। वो लड़ना नहीं चाहती थी, न ही जानती थी, लेकिन समय के हाथों मजबूर है। पढ़ी-लिखी व समझदार, आदर्श पत्नी बनने की कोशिश में एक सीमा तक समर्पण को भी तैयार, मगर जब मानव ने उसी लक्ष्मणरेखा को लाँघ दिया तो वो क्या करती…और फिर उसने संघर्ष किया, दुनिया से लड़ी, अपनों को सहा, समाज के नियमों को नारी के पक्ष में किया, सिर्फ इसलिए कि बेटी का जीवन सफल, सुखमय और शीर्ष पर हो…वो और आगे बढ़े…मगर वो इन शब्दों के अर्थों को यथार्थ में परिभाषित नहीं कर पाई…और फिर सब कुछ अपने हाथों में भी तो नहीं…उसने पति को जिन कारणों से छोड़ा था बेटी उसी राह पर चलती दिखाई दी…जीवन के हर मोड़ पर उजाले की तलाश में भटकती संचिता के लिए वह अंतिम अंधेरा था…। बेटी गेसू, आने वाली पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती एक स्वतंत्र युवती, …सफल है, उसके पास पैसा व नाम है तो उसके अपने आदर्श और अपनी सोच व समझ भी है…उसकी अपनी इच्छाएँ हैं तो फिर भूख भी तो विशिष्ट होगी…माँ के दर्द को भी अपने नजरिए से ही देख पाई थी। अंत में प्रगतिशील माँ के आदर्श, बेटी की जीवनशैली से उलझ गए। जीवनभर हर कशमकश का मजबूती से मुकाबला करती संचिता इस अंतर्विरोध को झेल न सकी और तभी…
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कशमकश / Kashmakash
₹520.00 ₹442.00
ISBN : 978-93-81467-12-1
Edition: 2012
Pages: 352
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Manoj Singh
Category: Novel
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