Description
इदन्नमम
समकालीन कथा-लेखन में सक्रिय एक सशक्त हस्ताक्षर मैत्रेयी पुष्पा की कलम से निकली औपन्यासिक कृति इदन्नमम से बुनी गई है तीन पीढियों की बेहद सहज और संवेदनशील कहानी । कहानी जो बऊ (दादी), प्रेम (माँ) और सदा (उपन्यास की नायिका)–तीनों को समानांतर रखने के साथ-साथ, एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा भी करती है । विरोधाभास की इस प्रतीति को लेखिका ने सक्षमता, सूक्ष्मता और पारदर्शी भाषाजाल से बुना है, जो अत्यंत पठनीय है और अपने स्वर में मौलिक भी।
इदन्नमम के आँचल से छिपा है विंध्य का अंचल । विंध्य की पहाडियों से घिरे वर्णित गांव श्यामली और सोनपुरा के जन-जीवन की जीवंत धड़कनों को यह उपन्यास सांस-दर-सांस कहना है और पाठक को लगता है मानो यह पूरे अंचल में कदम-कदम चल रहा है । इन गाँवों में-अंचल से धूल है, नदी है, पर्व है, गीत है, आहें-कराहें हैं, सत-असत है और है रूढियों और परंपराओं की भरी-पूरी दुनिया । उपन्यास के अंचल की इस दुनिया से आकांक्षा है, ईषर्या है और उन पर झपटते भेड़िये हैं, उन्हें त्यागते ‘साधु’ हैं तथा हैं हाढ़-मांस के सौ फीसदी पात्र ! शोषित होने से इंकार करते ये पात्र इस उपन्यास की अतिरिक्त विशेषता हैं ।
वरिष्ट कथाकार राजेन्द्र यादव के शब्दों में कहें तो इदन्नमम में “मिट्ठी-पत्थर के ढोकों या उसी डालियों और खुरदुरी छाल के आसपास की सावधान छटाई करके सजीव आकृतियाँ उकेर लेने की अद्भुत निगाह हैं लगभग “रेणु” की याद दिलाती हुई ।”
वास्तव में घनीभूत संवेदना और भावनात्मक लगाव से लिखी गई इदन्नमम की कहानी समकालीन हिंदी उपन्यास जगत् में एक घटना है, जिसका स्वागत किया जाना अभीष्ट है ।
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