Description
एक स्विच था भोपाल में
‘Union Carbide Corporation (U.S.A.)’s culture of greed and double standard, in short racism, bred a reckless depraved indifference to human Life.’
—Prosecuting attorney in New York court.
यूनियन कार्बाइड, भोपाल के वास्तविक संचालक विकसित देश अमेरिका के वेस्ट वर्जीनिया में थे, जो एक विकासशील देश के प्रति अपने नस्लवादी तथा औद्योगिक उपनिवेशवादी रवैये के चलते यहां की सुरक्षा व्यवस्थाओं के प्रति घोर आपराधिक रूप से लापरवाह बने रहे। ध्येय सिर्फ लाभार्जनµकोई जिए या मरे अपनी बला से।
प्रकारांतर से यह वही रवैया था, जिसके तहत वे ढाई-तीन सौ वर्ष पूर्व अपने गुलामों से मजदूरी करवाते थे।
कम ध्यान गया है गैस-त्रासदी के पूर्व भोपाल के कारखाने में कई वर्षों तक निरंतर घटती चली गई रिसाव की घटनाओं पर, जो अंततः शताब्दी की भीषणतम औद्योगिक दुर्घटना में परिणत हुई। प्रस्तुत उपन्यास में वर्णित घटनाएं क्रमबद्ध रूप से वही हैं। तथापि उनका विवरण व प्रस्तुतिकरण तथा उपन्यास के सभी पात्रा काल्पनिक हैं।
2-3 दिसंबर, 1984 की उस रात टैंक नंबर 610 में खतरनाक मिथाइल आइसोसायनेट गैस अधिकतम आधे टन के बजाय, पूरे 42 टन भरी हुई थी। उसके साथ लगे पाइपों से जब उसमें पानी प्रविष्ट हुआ तथा रिएक्शन के साथ गैस बाहर निकली, तब उसे काबू करने के लिए लगी तमाम सुरक्षा-प्रणालियां खराब थीं।
उपन्यास में वर्णित ‘एक स्विच’ वह प्रस्थान-बिंदु है, जिसे आॅन करने पर उन पाइपों में पानी दौड़ा होगा, जो उस भीषण दुर्घटना का कारण बना।
अब तक के अल्पचर्चित घटनाक्रम और संचालकों की नस्लवादी मानसिकता को रेखांकित करता, यथार्थ और फैंटेसी के बीच तड़पता हुआ-सा, नरेन्द्र नागदेव का नया उपन्यासµ‘एक स्विच था भोपाल में’।
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