Description
अनाम यात्राएं
जीवन एक सफर और हमें निरंतर इस सफर में चलते रहना है । जो चलता रहा, वह जीता रहा और जो बैठ गया, सो बैठ गया । अकसर लोग यात्राओं से घबराते है । कई कारण हैँ-आर्थिक अभाव साथ की कमी या वैसे ही मन नहीं करता, आलस्य में स्चा-बसा मन बस आराम करना चाहता है । हमारा शरीर ‘हड्ड हराम’ हैं, वह आराम चाहता है, पर जितना ही इसे माँजा जाए, उतना ही यह निखरता है ।
हिमालयी श्रृंखलाएं, हिममंडित शिखर व्यक्ति को बार-बार बुलाते हैं । इनके ऊपर गूंजते संगीत के स्वर और लोककाथाएं आत्मविभोर कर देती हैं और इनके अजस्र जलस्रोत जहां नैसर्गिक परिवेश को जन्म देते है, वहीं पर थके हुए मन और शरीर को संबल देते है ।
लेखक ने पश्चिमी हिमालयी सांस्कृतिक क्षेत्र व अनेक हिमानियों के साथ-साथ दूसरे दुर्गम इलाकों की साहसिक यात्राएं की हैं, जिनका विशद विवरण इस पुस्तक के रूप में पाठकों को सौंपा जा रहा है । ये यात्राएं कूमाऊं-गढ़वाल, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के पर्वतीय एव सांस्कृतिक क्षेत्रों से ही संबंधित हैँ, मात्र द्वारकापुरी की यात्रा को छोड़कर । यात्राओं का निरंतर सिलसिला लेखक के अलमोड़ा में प्रवास के दोरान शुरू हुआ, जब सारे उत्तरांचल के साथ हिमानियों को भी ट्रेक किया गया, जहाँ हिमालियाई संस्कृति को बहुत करीब से रखकर स्वय भी लेखक हिंमालियाई हो आया था ।
इन ब्योरों के साथ ही उन सभी साथियों-सहयोगियों और मार्गदर्शक का सीधा-सहज और बिना किसी लाग-लपेट के वर्णन भी दिया जा रहा है, जो इन संस्मरणों को और भी मनोरंजक और दिलचस्प बना देता है । आशा है, ये सभी संस्मरण/यात्राओं का वर्णन पाठकों को अच्छा लगेगा ।
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