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आलाप-विलाप / Aalaap Vilaap

150.00 120.00

ISBN : 978-93-80146-12-6
Edition: 2011
Pages: 104
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Rajendra Lehriya

Category:
आलाप-विलाप
कथाकार राजेन्द्र लहरिया के उपन्यास अपने समय से मुठभेड़ करते कथ्य के साथ ही मर्म को छुने वाले होते हैं और उनका शिल्प भी नव्यता से भरा और पाठकीय जिज्ञासा को उकसाने वाला होता है । वे अपने उपन्यासों को ‘कहानी’ की तरह साधते हैं, जहाँ कुछ भी फालतू होने  (लिखने) की गुंजाइश नहीं होती । ‘आलाप-विलाप’ भी इसका अपवाद नहीं है । बकौल लेखक, ‘सकेतों की ‘भाषा मनुष्य हमेशा से समझता आया है । कोई कहानी या उपन्यास लिखते वक्त मेरा ध्यान इस बात पर हमेशा बना रहता है कि मेरा काम यदि एक शब्द लिखने से चलता है तो अनावश्यक दस शब्द क्यों लिखूं! शब्दों की फिजूलख़र्ची तो कई तरह के नुकसान करती है…
‘आलाप-विलाप’ के बारे में एक सुधी पाठक की राय द्रष्टव्य है : ‘कथाकार राजेन्द्र लहरिया का लपन्यास ‘आलाप-विलाप’ मार्मिकता से भरा व मूलत: राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक छदमों को उदूघाटित करता है। जीवन की भयावह स्थितियों इस उपन्यास को जीवंत कथ्य देती है । छोटे-छोटे उपकथानकों में परिवेश की  पीड़ाओं के झकझोरने वाले वर्णन इसके प्रभाव को सघन करते हैं। हमारे समय की एक प्रमुख समस्या नक्सलवाद के उभार और उसकी वजहों को भी इस उपन्यास में देखा-पहचाना और समझा जा सकता है । प्रशासनिक और सांस्कृतिक-साहित्यिक छदमों और पाखंडों की लीलाएँ गरीब, कमजोर और संवेदनशील व्यक्तियों तथा तबकों को क्या-क्या नचाती हैं, इसका-दिलचस्प और बेधक दिग्दर्शन इस उपन्यास में है। और खास बात यह है कि  अँधेरे समय और स्याह चरित्रों के बीच भी उम्मीद की  कौंध से भरे कुछ ऐसे उजले चरित्र यह उपन्यास हमें देता  है, जो लड़ाई को बेहद कठिन समझते हुए भी अविचल  रूप से संघर्ष करते है, और इसलिए उनकी हार भी हमें  निराशावाद की ओर नहीं ले जाती । वह इस छोटे से उपन्यास  की बड़ी खुबी है…
कहा जा सकता है कि ‘आलाप-विलाप’ आकार से लघु, मगर सरोकार में बडा उपन्यास है ।
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