Description
आदिवासी संस्कृति अब तक ज्ञात मानव सभ्यताओं में सबसे प्राचीन है। इस समाज की लोककथाओं-गाथाओं में मानव सभ्यता के शुरुआती दौर के सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यबोध की झलक तो मिलती ही है, साथ ही ये हमें आदिम मनुष्य को विस्मित कर देने वाली कल्पना की उड़ान और मनुष्य की आकांक्षाओं-अपेक्षाओं की मंत्र-मुग्ध करने वाली विरासत भी सौंपती हैं। ये कथाएँ–मिथक मानव सभ्यता के विकास की कथाएँ हैं–परिवर्तनों की दस्तकें दर्ज हैं इनमें–कल्पना और यथार्थ की भाषा में बोलती हैं ये कथाएँ। यदि हमने मौजूदा भूमंडलीकरण के दौर में मानव सभ्यता की इस विरासत को सुरक्षित नहीं रखा तो वर्तमान पीढ़ी के साथ ही ये विस्मृत हो जाएँगी।
इस संकलन में झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात और अंडमान-निकोबार की कथाओं को शामिल किया गया है। इन्हें पाठकों की सुविधा के लिए 12 खंडों में विभाजित किया गया है। पृथ्वी की उत्पत्ति से संबंधित खंड में आदिवासी समूहों व समाजों में मौजूद आस्थाओं, विश्वासों व उनकी अपनी-अपनी अवधारणाओं पर आधारित लोककथाएँ शामिल की गई हैं।
‘पशु-पक्षी और जलचर खंड’ में संताली की ‘छोटी चिड़िया की कथा’ में छोटी चिड़िया की वीरोचित कथा का संवाद सुनकर मानव में एक संदेश पहुँचता है कि कैसे एक छोटी चिड़िया भी एक अन्यायी एवं अहंकार से भरे हाथी का दर्प-दलन कर सकती है। यह साहस तभी जुटने लगता है, जब कोई व्यक्ति अथवा प्राणी सत्य-पथ पर चलकर किसी अत्याचारी के विरुद्ध अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति एवं संकल्प के साथ सामना करने के लिए तैयार हो। इस खंड में मानव और अन्य जीवों के बीच भावनात्मक संबंधों की प्रेरणादायक कथाएँ संकलित हैं।
इसके अलावा ‘प्रेम-कथा’, ‘विवाह, गोत्र और रीति- रिवाज’, ‘रिश्तों का सच’, ‘कायांतरण’ और ‘लोकजन्य कथाएँ’ खंड की मिथ कथाओं में स्वैरागात्मक व संवेदनाओं, सामाजिक गतिविधियों के उद्भव व विकास, प्रकृति के सहयोग व संवाद और मनुष्य की विभिन्न अच्छी-बुरी प्रवृत्तियों को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
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