‘धन्नो के कान उसकी तरफ लगे थे, किंतु मन…?
मन तो आज जैसे हजार आंखों से उन तसवीरों को देख रहा था, जो उसके स्मृति पट पर उभर रही थी।
उनमें तारा ही तारा थी….कभी बेरियों से बेर तोड़ते हुए…कभी शटापू खेलते हुए…कभी खेतों में कोयल संग
कूककर भागते हुए… कभी ढोलक की थाप पर गाते हुए…कभी ‘तीयों’ के गोल में थिरकती तारा नजर आती…कभी ब्याह के सुर्ख जोड़ो में सजी हुई लजाती-मुस्कराती दिखती…और फिर…उसकी आंसुओं में डूबी छवि के साथ यह सिनेता रील टूट जाती…।’
-इसी उपन्यास से
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कनक छड़ी / Kanak Chharee
₹100.00 ₹85.00
ISBN: 978-81-88122-06-6
Edition: 2003
Pages: 124
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Santosh Shailja
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