Description
मां का अडिग साहस देख तिलक विस्मित थे। आज पहली बार मां व बाबा को अपने दु5ख का संवेदनशील श्रोता मिला था। इस लंबी वार्ता में तीनों की आँखें कई बार गीली हुईं और कई बार गर्व से छाती फूल उठी। जाने से पहले लोकमान्य ने झुककर मां व बाबा के चरण स्पर्श किए और रुंधे कंठ से कहने लगे, ‘इस गौरवशाली बलिदान का श्रेय न मुझे है न उन्हें है-बल्कि सचमुच में इसका श्रेय आपको और आपकी बहुओं को है। गीता पढ़ना सरल है मां, पर उसे वास्तविक जीवन में उतारना बहुत ही कठिन हैं एक बार मरना संभव है, किंतु इस प्रकार मरण को हृदय से लगाए हुए जिंदा रहना बहुत असंभव है। पर आपने वही कर दिखाया…धन्य है आप!’
-इसी पुस्तक से
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