Description
लगभग दो दशकों से जिन युवा कथाकारों ने साहित्य में अपनी खास जगह बनाई, उसे पुख्ता किया और प्रतिष्ठा अर्जित की, उनमें अनिता सभरवाल का नाम महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने बहुत कम समय में बेहद खूबसूरती और प्रभावशाली कहानियां हमें दी हैं। उनके लेखन में बात को सीधे-सपाट ढंग से बयान न कर भाषा की आंतरिक लय की रचनात्मक शक्ति से एक सगुण रूप देने का हुनर है। उनकी कहानियों के पात्र पाठकों को अपने आसपास की संवेदनाओं से जोड़ते हैं। वे बिना किसी प्रयास के बहुत बारीक ब्यौरे दर्ज करती हैं और एक पूरम्पूर संवेदित कथाकार के रूप में हमारे सामने आती हैं। अपने लेखन में अनिता ने अपनेहोने के अर्थ को अचीव किया है। उनकी कहानियों में प्रेम एक हकीकत है; एक दर्शन है। वक्त का देह की तरंगों से उठा हुआ संगीत भर नहीं, जीवन का आदिम राग है। उन्हें इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने स्त्री के भीतर बरसों से दबे प्रेम के अहसास को गहराई से उद्घाटित किया और ऐसे नाजुक विषय को डील करते हुए भाषा में स्तरहीनता को कोई जगह नहीं दी।
स्त्री विमर्श के नए-नए रंग-रूप, स्त्री-स्वतंत्रता और समात को नकली खिलखिलाहटों से विरूपित करती हुई भीड़ में एक अलहदा आवाज अनिता की है।
परंपरा का लगातार इस तरह समृद्ध होना अच्छा लगता है। उनका यह कथा संग्रह यही आश्वस्ति देता है कि जिन मूल्यों और सरोकारों के लिए बहुत धीरता और गंभीरता से अनिता जी अपनी सृजनात्मकता का गहरा अहसास करा रही हैं, वर्तमान साहित्य की दशा-दिशा पर इसका सार्थक और सारगर्भित असर पड़ेगा।
-मुकेश वर्मा