Description
बेख़ोफ अंगारे
साहित्य को अब रास नहीं आता निरा रस उससे भी जुरूरी है कलमकार में साहस ये काम अदब का है-अदब करना सिखाए उनको जो बनाए हैं हरिक काम को सरकस दम घुट रहा अवाम का, फूनकार बचा लो सब मूल्य तिरोहित हुए, दो-चार बचा लो सच्चे की जुबां पर हैं जहां जुल्म के ताले हर ओर लगा झूठ का दरबार, बचा लो संपादकीय ऐसे हैं ऐ दोस्त, तुम्हारे जैसे अंधेरी रात में दो-चार सितारे गुणगान में सत्ता के जहां रत हैं सुखनवर तुम ढाल रहे शब्द में बेखौफ अंगारे मैं खुश हूं बड़े यत्न से धन, तुमने कमाया उससे भी अधिक खुश हूं कि फन तुमने कमाया मेरी ये दुआ है कि सलामत रहो बरसों सदियों रहे जिंदा जो सृजन तुमने कमाया।
-बालस्वरूप राही