Description
यादों के गलियारे से (कविता-संग्रह) साहित्य समाज का दर्पण है। काव्य समाज का स्वरूप है। समाज के अनुरूप ही काव्य की रचना होती है। यह धारणा अनादिकाल से चली आ रही है, जो आज भी चरितार्थ है। काव्य और साहित्य का अन्योन्याश्रय संबंध है। अद्यतन कवि की रचना संसर्ग से प्रभावित होती है। चूँकि कवि भ्रमणशील होते हैं, इसलिए संसर्ग गुणों का प्रभाव उन पर पड़ता ही है। ‘संसर्गजा दोष गुणा भवंति’ यह सूक्ति सार्थक प्रतीत होती है। साथ ही आज काव्य की रचना समाज की माँग के अनुरूप होती है। कवि जब आत्मा की आवाज को सुनकर रचना करता है, तब वह हृदयस्पर्शी हो जाता है। कवि की कवित्व शक्ति अनंत होती है। यह पूर्व संस्कारों से मिलती है। ‘नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा, कवित्वं दुर्लभं तत्र शक्तिस्तत्र सुदुर्लभा’। ब्रह्मा की सृष्टि में केवल छह रस होते हैं—कटु, अम्ल,कषाण, लवण, तिक्त तथा मधुर किंतु कवि की सृष्टि में शृंगार, हास, करुण, रौद्र, वीर, बीभत्स, अद्भुत, भयानक और शांत नौ रस होते हैं। कवि अपने संकल्प मात्र से ही किसी रस का आवाहन कर सकता है, पर ब्रह्मा के रस को प्राप्त करने के लिए अन्यान्य उपकरणों की आवश्यकता होती है। कवि का अपना एक काव्य लोक होता है। काव्य कल्पना पर आधरित है। कल्पना का आधर सत्य है। यह आधर कवि को समाज से प्राप्त होता है। कविता, कवि के हृदय की वह ध्वनि है, जो मुँह से अथवा लेखनी से निकलते समय कवि को भी अचेत कर देती है। सुनने के बाद ही कवि को भी पता चलता है कि उसने क्या कहा। ऐसी ही कविता काव्य लोक में समादृत होती है।