Description
सामान्य जन-मानस में वैज्ञानिकों के प्रति एक आम धारणा यह है कि उनका जीवन एकदम नीरस एकांतिक और अलग-थलक किस्म का होता है। पर पुस्तक के ये प्रसंग इस तस्वीर का दूसरा पहलू पेश करते हैं। वास्तव में वैज्ञानिकों का जीवन भी सामाजिकता और हास-परिहास से एकदम परिपूर्ण होता है और अवसाद-विषाद भरा भी, हमारी-आपकी ही तरह। उनके भी सामाजिक सरोकार और उत्तरदायित्व होते हैं। उन्हीं के साथ वे भी जीते और मरते हैं। पुस्तक में समाहित प्रसंग वैज्ञानिकों के बारे में व्याप्त भ्रांत धारणाओं को निर्मूल करते हैं। उनकी भी जिंदगी रोमांच से लबरेज है और हर्ष-विषाद से सराबोर भी, ठीक हमारी ही तरह।