Description
वाल्मीकि के ‘रामायण’ का अध्ययन करते समय हमें चरित्रों को दृष्टि से, चरित्र-चित्रण की दृष्टि से, घटनाओं की स्वाभाविकता की दृष्टि से, वर्णनों के औचित्य की दृष्टि से और चरित्रों के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की दृष्टि से जो कमियाँ नज़र आती हैं, उन सभी का समाधान उत्तर कांड नामक इस उपन्यास में मिलता है। जैसा कि “पर्व” में किया गया था, “उत्तर कांड’ में भी चरित्रों और घटनाओं को मिथकीकरण से मुक्त करके, स्वाभाविक परिवेश में प्रस्तुत कर दिया गया है। इसलिए इसको आधुनिक गद्य-महाकाव्य होने की प्रतिष्ठा भी मिली है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि (कन्नड् में) एक ही साल में इसकी तेरह आवृत्तियाँ और आज तक अट्ठारह आवृत्तियाँ प्रकाशित हुई हैं और इसके हिंदी, अंग्रेज़ी तथा मराठी अनुवाद भी प्रकाशित हो चले हैं।
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