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तंतु / Tantu

695.00 590.75

ISBN : 978-81-89859-08-4
Edition: 2011
Pages: 784
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Bhairappa

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Description

  • विद्यार्थियों में मांस-मदिरा, मुक्त यौनाचार, पश्चिमी डिशेज और संस्कृति का अंधानुकरण; कारण ‘विद्यालय का संबंध इस देश की धरती और अंग्रेजी भाषा का हमारी माटी से संबंध का न होना।
  • सरकारी कर्मचारी, विधायक, मंत्री, प्रधानमंत्री सभी में व्यक्तिगत हित और स्वार्थों को साधने की होड़। सार्वजनिक भूमि, वन, खानों आदि पर नाजायज कब्जा और उनका दोहन। पूरे तंत्र का जाति-उपजाति के आधार पर विभाजन। रिश्वतखोरी और जनता का शोषण। यहाँ तक कि मंदिरों की भूमि का अधिग्रहण और मूर्तियों तक की चोरी। चारों ओर जायज-नाजायज तरीकों से धन-संपत्ति हथियशना और झूठी शान-शौकत का दिखावा।
  • प्राचीन काल के कुल-प्रमुखों की भाँति ‘जन-प्रतिनिधियों’ द्वारा अपने-अपने बेटे-पोतों को गद्दी पर आसीन कराना।
  • मानवीय मूल्यों करुणा, सहानुभसूति, लाज-शर्म, सहायता-सहयोग आदि का लोप।

इन समस्याओं को हल करने में विफल सरकारी तंत्र की निस्सहायता तथा इन परिस्थितियों को सुधारने और मानवीय मूल्यों के पुनस्र्थापन के निजी संस्थागत प्रयासों में सरकार द्वारा अडं़गेबाजी इन सभी प्रवृत्तियों के आरंभ होने से लेकर आपातकाल के प्रारंभिक दौर में अपने चरम पर पहुँचने तक की कहानी। एक पत्राकार रवीन्द्र, उसकी पत्नी कांति और पुत्र अनूप के द्वारा ‘समस्त राष्ट्र के समकालीन इतिहास के इन्हीं स्थूल तंतुओं’ की डाॅ. भैरप्पा ने अपनी विशिष्ट शैली में सशक्त-सजीव रूप से उजार किया है।
आज के दौर के समाज और राजनीति को समझने के लिए नितांत अनिवार्य उपन्यास।

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