Description
‘शिक्षा: मानवीय संवेदनाएँ एवं सरोकार’ में वर्ष 2011 के बाद विभिन्न आयामों पर लिखे गए लेख शामिल किए गए हैं। अधिकांश शिक्षा के विभिन्न पक्षों पर वर्तमान स्थिति तथा उसमें परिवर्तन की आवश्यकता तथा संभावित समाधानों की चर्चा करते हैं। इस संग्रह में ऐसे लेख भी रखे गए हैं जो सीधे-सीधे शिक्षा व्यवस्था से जुड़ते नहीं लगते थे। उन्हें रखा इसलिए गया था कि शिक्षा व्यवस्था को केवल विभागीय या मंत्रालय स्तर पर ही नहीं देखा जाना चाहिए। समाज के हर पक्ष तथा परिवर्तन का शिक्षा व्यवस्था से जीवंत जुड़ाव है। इसमें आर्थिक, सांस्कृतिक तथा नैतिकता के परिवर्तन भी प्रमुखता से आते हैं। राष्ट्रीयता तथा वैश्विकता के हर आयाम से शिक्षा स्पष्ट रूप से जुड़ती है। विकास और प्रगति की गति शिक्षा की गतिशीलता तथा परिपूर्णता पर ही निर्भर करती है। भारत की कृषि व्यवस्था में आई शिथिलता से लेकर सिलिकान वैली में युवा भारतीयों द्वारा नाम कमाया जाना शिक्षा की गुणवत्ता की श्रेष्ठता या कमजोरी से ही जुड़ते हैं। हिंसा, अविश्वास, शोषण, आतंकवाद, पंथिक उन्माद जैसी विभीषिकाओं ने विश्व में असुरक्षा की स्थिति पैदा की है। इसका समाधान भी शिक्षा की सुदृढ़ता, गुणवत्ता तथा नैतिकता को आत्मसात् कराने की क्षमता पर ही निर्भर करेगा।
इसी पृष्ठभूमि में इस पुस्तक में लेखों को शामिल किया गया है। इसमें समस्याएँ वणर््िात हैं, व्यक्तियों के योगदान भी निहित हैं, भाषा की बातें हैं, अध्यापकों पर विवेचन हैं, माता-पिता, संस्कारों, मूल्य शिक्षा, शिक्षा के मूल अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन की चर्चा है और प्रयास यह रहा है कि सभी महत्त्वपूर्ण पक्ष पाठक के सामने उभरकर आ जाएँ। वे अपेक्षाएँ भी उभरी हैं जो सामान्यजन की अवधारणा में शिक्षा को प्रभावित करती हैं।