Description
यह किताब हमारे समय के एक बड़े रचनाकार शंकर शेष के नाट्यकर्म का आलोचनात्मक विमर्श है। नए विचार और शास्त्र इस नाट्य-विमर्श की धार बनते हैं। हेमंत कुकरेती ने शंकर शेष के नाटकों को समझने के लिए ढांचागत आलोचना-पद्धति को अपर्याप्त सिद्ध करते हुए ऐसी नाट्यालोचना का प्रारूप निर्मित किया है, जो अपने विश्लेषण में अचूक और विश्वसनीय है। शोध के अनुशासन में रूपाकार लेता यह विवेचन जहां नाटक के माध्यम से मुठभेड़ करता है वहीं शंकर शेष के बहाने उनके समय और समाज में जीवित मनुष्य के जीवन के नाटक के सत्य को उजागर कर देता है।
-अनिल कुमार