Description
बस्ती का खुदा उठा । मैदान की ओर देखकर मुस्कुराया और धीरे-धीरे चबूतरे की सीढी चढ़ने लगा ।
दो चढ़ता रहा । तालियां बजनी रहीं।
अचानक तालियां रुक गई ।
लोगों ने बस्ती के खुदा को एकाएक बीच सीढी पर रुकते हुए देखा । ‘
सबकी धडकने तेज हो गई । उसे अपने इस खुदा पर पूरा विश्वास था । ताली बजाने वालों में अब मैदान के एक- आध हिस्से को छोडकर बाकी लोग भी शामिल हो गए थे । वे पहले के तीन खुदाओं की छवि से बुरी तरह निराश थे और चाहते थे कि कम से कम इस खुदा की छवि दुरुस्त रहे । बस्ती का यह खुदा औरों के मुकाबले अधिक सौम्य, संजींदा और भरोसेमंद था ।
बस्ती के खुदा ने बस्ती के लोगों को मुड़ के देखा । मुस्कुराया । हाथ हिलाया और फिर सीढी चढने लगा ।
तालियां फिर बजनी शुरू हुई ।
तालियां बजती रहीं . . . . बजती रहीं ।
और फिर . . . . पूरे मैदान में मरघट-सा सन्नाटा छा गया ।
आईने के सामने बस्ती का खुदा खडा था और उसमें मुखौटों का अक्स उभर आया था ।
बस्ती के लोग पागलों की तरह अपना सिर धुन रहे थे । उसे अपने जिस खुदा पर सबसे ज्यादा भरोसा था, वो बहरूपिया बना उनके सामने खड़ा था ।
– इसी पुस्तक से