रजनी-दिन नित्य चला ही किया
गुरुवर आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने अनेक विधाओं में रचना की है। उनका कवि रूप अपेक्षाकृत अल्पज्ञात है । उनकी कविताओं में, उनके निबंधों की ही भाँति, सर्वत्र एक विनोद-भाव मिलता है। गंभीर चिंतन और व्यापक अध्ययन को सहज तौर पर हलके-फुलके ढंग से पाठक श्रोता पर बोझ डाले बिना प्रकट करना उनके व्यक्तित्व और लेखक की विशेषता और क्षमता है । द्विवेदी जी लोकवादी विशेषण को पसंद नहीं करते थे, क्योंकि वे लौकवाद का संस्कृत में क्या अर्थ होता है, समझते थे । लेकिन वे महत्व सबसे अधिक लोक को देते थे । वे बोलियों, लोक-साहित्य, लोक-धुनों और जन-प्रचलित लोक-साहित्य रूपों पर अतीव गंभीरता से विचार करते थे । द्विवेदी जी ने संस्कृत और अपभ्रंश में भी कविता की है । उनकी काव्य-दृष्टि मनुष्य की उच्चता और नीचता दोनों को देखती है, इसीलिए उनकी कविताओं में संवेदना और समझ का संयोग है ।
[भूमिका से]