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राई और पर्वत / Rai Aur Parvat

250.00 212.50

ISBN : 978-81-7016-666-5
Edition: 2013
Pages: 148
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Rangey Raghav

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Category:

Description

रंगीन कपड़े उतरे, सफेद धोती आई, सुहागिनों ने मन के भीतर कहीं हौंस से भरकर, दूसरी ओर अपने भविष्य को डर-डरकर प्रणाम करते हुए उसके हाथों की चूड़ियां तोड़ दीं और अब उंगलियों में जवानी की किलकारियां मारने वाले बिछिया नहीं रहे। जिन बालों पर कभी मास्टर के हाथ सिहर उठते थे, वे रूखे हो गए और माथे की बिंदिया चूल्हे की लपटों में थरथराने लगी। उसे वह देख सकती थी, मगर छू नहीं सकती थी, क्योंकि उसमें भस्म कर देने की शक्ति थी अब। यौवन के वह उभार जो अंग-अंग में आ रहे थे, जैसे बेल बढ़ती है; अब वह उन सबसे लजाने लगी। फूल-सी कहलाती थी जो आयु, ब्राह्मण जाति में पति एक पुल है, जो स्त्री के लिए जन्म और मृत्यु के पर्वतों को मिलाता है, जीवन की भयानक नदी को निरापद बनाता है। वह न रहे, तो कहां जाए स्त्री? कब से होता आ रहा है ऐसा और अब यही शाश्वत-सा हो गया है।
-इसी पुस्तक से

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