सत्ता, धन, अहं और स्वार्थ, संघर्ष, कुटिलता, निकृष्टता और छल की जुगलबंदी में राज्य, परिवार में व्याप्त षड्यंत्र में उलझी यह इस देश के प्रदेश के समाज के एक गुमनाम, परिवार की तथाकथा है। हम बीते युग में (स्मृति में, इतिहास में) प्रवेश करते हैं, तो इस तरह की घटनाओं से सामना होना स्वाभाविक है।
कई टूटते-डूबते, उबरते परिवारों में यह घटा है। कहीं नायक असफल हुआ है, कहीं-कहीं नायक इन सबसे उभरकर ऊपर आया है, विजयी हुआ है।
भाषा, कौटुंबिक एवं घटनाओं में अतिरेक, होना स्वाभाविक है। विश्वास के आधार पर घटनाओं का विवरण अतिरेक होते हुए भी स्वाभाविक लगे उसका यत्न किया है।
बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता है। वहीं पुरानी पीढ़ी से किस्तों में सुनी कथाओं पर आधारित यह तथाकथा पाठक के मन में घर कर पाएगी इसी आशा से यह प्रस्तुत है।
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