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Prakriti Naye Roop Mein Janam Do Mujhe

195.00 165.00

ISBN: 978-93-93014-97-9
Edition: 2024
Pages: 104
Language: Hindi
Format: Paperback

Author : Archana Mishra

Categories: ,

लेखन से क्या होता है? कुछ भी तो नहीं। अधिकांश लोग इसे व्यर्थ का कार्य ही मानते हैं। उस पर से कविता लेखन को तो शायद ही आज के समय में पाठक मिलते हैं। हाँ, ये अवश्य है कि काव्य सम्मेलनों में ठीक-ठीक भीड़ जुट ही जाया करती है! भीड़ बहुत सीमा तक जिम्मेदार है समकालीन समाज में कविताओं की गिरती गुणवत्ता के लिए। भीड़ मनुष्य को आत्म-चिंतन की अनुमति कहाँ देती है? आज का मनुष्य कब और क्यों विचार करे कला के दूषित सौंदर्य के विषय पर?
कला में सौंदर्य की परिभाषा सोशल मीडिया के रील्स तक सीमित हो गई है। आज कल कितने लोग किताबें पढ़ते हैं? (उस पर कितने लोग हिंदी की किताबें पढ़ते हैं? उस पर कविताओं को कौन ही पूछता है?) यह लिखते हुए मुझे फेसबुक पर एक हिंदी प्रकाशन गृह द्वारा प्रकाशित एक काव्य संग्रह पर किए गए टिप्पणी का स्मरण हो आया-फ्आज के समय में ये ‘कविता-फविता’ की किताब कौन पढ़ता है? फेसबुक पर हर दूसरे पोस्ट में कविता ही तो लिखी रहती है।
सच कहूँ तो इस जीवन के सारे दुःख एक ओर-और ‘कविता-फविता’ सुनने का दुःख दूसरी ओर। इस दूसरे दुःख ने मुझे अपने अस्तित्व की व्यर्थता से जा मिलाया। हाँ, व्यर्थ ही तो है कविता लेखन। आज के जमाने में, जहाँ सोशल मीडिया पर हर कहीं चार पंक्तियों की कविताएँ भरी पड़ी हैं, वहाँ और कविताएँ पढ़ना कौन चाहेगा? उस पर इस विधा की आर्थिक रुग्णता ने इसे और भी दयनीय रूप में पहुँचा दिया है। सच, यह देश कवियों का नहीं! यह देश, जिसे अपना प्रथम नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने का सौभाग्य कविताओं ने ही दिया!
फिर भी मेरा काव्यमय मन यह कहने का दुस्साहस करता है
कि-
मैं आदि काल से लिखती आई हूँ और
अनंत काल तक लिखती ही रहूँगी।
लिखती रहूँगी
इस सृष्टि के एकांत में बसकर,
इसकी चीखों को
वेदनाओं को
भावनाओं को लिखती रहूँगी।

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