Description
फिर पलाश दहके हैं
गीतकार कन्हैया लाल वाजपेयी आपको गली, नगर, क़स्बा, चौबारों, किसी नदी के पास अथवा सूखे तट पर, कहीं भी सहज और सामान्य रूप से गाता-गुनगुनाता घूमता मिल सकता है । मिलने को तो बाजार में भी मिल जाएगा, लेकिन बाजार में बेच सकने के लिए इसके पास कुछ है नहीं-
हम खाली जेबों में
बाजार लिए घूमे… ।
का यह गायक बाजार में मिल जाने पर भी-
नयनों की चितवन
अधरों की लाली
फूलों की मुस्कानों’ का गाहक हूँ ।
जैसे ग्राहक के ही रूप में अपना परिचय देता महसूस होगा ।
इन कन्हैया लाल वाजपेयी ने अपनी अब तक की भिन्न-भिन्न ‘मूड’ (मानसिकताओं) को गीत- यात्राओं में अपने जो चरण-चिह्न छोडे हैं वे राजमहल से लेकर गलियों, चौबारों, घाटियों और नदी तटों तक बिलकुल साफ, गहरे और स्पष्ट हैं ।
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