Description
पिछली सदी के आठवें दशक में लोकप्रिय पत्रिका ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में कथा-श्रृंखला के रूप में प्रकाशित हुई राजेन्द्र राव की इन असफल प्रेम-कहानियों ने कितना तूफान मचाया था, उस दौर के पाठक ये अच्छी तरह जानते हैं। उदात्त प्रेम की ये आवेगमयी कहानियाँ दरअसल प्रेम के बाह्य स्वरूप को ही नहीं, बल्कि उसकी गहनता को भी विश्लेषित करती हैं। इन कहानियों से गुजरते हुए ‘प्रेम’ की उस भावातिरेक अवस्था को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है, जहां पहुंचकर प्रेमी और प्रेमिका कोई भी परिणाम भोगने को तैयार हो जाते हैं। उनके मन में, पाप-पुण्य, दुनियादारी, सामाजिक नियम-कायदे, रिश्ते-नाते और अपने जीवन तक के लिए कोई मोह या भय नहीं रह जाता। ये कहानियां जहां एक ओर प्रेमांध युगलों के सामान्य जीवन की दुश्वारियों और उनके आंतरिक टूटन-फूटन को व्याख्यायित करती हैं, वहीं दूसरी ओर यथार्थ के कठोर धरातल पर कोमल भावनाओं की टकराहट से उपजने वाले ज्वार का भी मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है। कहना चाहिए कि कथाकार राजेन्द्र राव ने जीवन के बहुत नजदीक से उठाए गए इन कहानियों के प्लाॅट में अपनी कलम का जादू कुछ इस तरह उतारा है कि जिन्हें पढ़कर पाठक पूरी तरह प्रेमाप्लावित हो जाता है।
ये कहानियां बेहद पठनीय होने के साथ ही ‘प्रेम’ को समग्रता से महसूसने का रास्ता भी मुहैया कराती हैं।
-विज्ञान भूषण