Description
इस पुस्तक में समय-समय पर दिए मेरे कुल पंद्रह साक्षात्कार संकलित हैं, जो महज़ स्त्री, दलित, आदिवासी, साहित्य, समाज और संस्कृति पर मेरी चिंतन-प्रक्रिया को ही नहीं रेखांकित करते हैं, बल्कि इनमें मेरे जन्म, बचपन और पारिवारिक पृष्ठभूमि की गई परतें भी जाने-अनजाने, चाहे-अनचाहे उद्घाटित हुई हैं।
इन साक्षात्कारों में समकालीन विमर्शों के कुछ ऐसे कोण मौजूद हैं, जो मेरी कहानियों, कविताओं, आलेखों और संपादकीयों में नहीं आ पाए। यह कहना मौजूँ होगा कि-‘सारे फ़साने में जिनका ज़िक्र न था-कुछ वे बातें भी इनमें हैं।’
साक्षात्कार इस मामले में महत्वपूर्ण होते हैं कि सृजन की प्रक्रिया का संबंध जहाँ सिर्फ लेखक से होता है या कहें नितांत निजी होता है, वहीं साक्षात्कार में एक साझा रचना-प्रक्रिया चलती है, जहां कई बार साक्षात्कारकर्ता की भूमिका साक्षात्कार देने वाले से ज्यादा अहम होती है।