Description
मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य के सर्वाधिक सहज रचनाकारों में से एक हैं। ‘नयी कहानी’ आंदोलन से पहचाने गए कथाकारों में उनकी ख्याति इस रूप में है कि वे किसी आंदोलन या विमर्श के संकेतों का सार-संक्षेप नहीं लिखतीं। उनकी कहानियां परिचित परिदृश्य के नेपथ्य में खड़े जीवन-सत्य को सामने ला खड़ा करती हैं। उनके उपन्यास अब क्लासिक माने जाते हैं। अन्यान्य विधाओं में भी उनकी सहज समझ ने कई प्रतिमान गढ़े हैं।
‘मेरे साक्षात्कार’ में मन्नू भंडारी के साक्षात्कार संजोए गए हैं। स्वाभाविक है कि कुछ व्यक्ति हैं जो उनसे प्रश्न पूछ रहे हैं, लेकिन साफ प्रतीत होता है कि मन्नू भंडारी समय व व्यापक पाठक समुदाय से मुखातिब हैं। कहना न होगा कि इन प्रश्नों में वे उत्सुकताएं, कुतूहल, व्यग्रताएं और अपेक्षाएं अनुध्वनित हैं जो उनकी रचनाएं पढ़ते समय सजग हुई हैं। कथा की अंतर्कथा तो रचनाकार ही बता सकता है। मोटे तौर पर जिसे रचना प्रक्रिया कहते हैं, या जमीन की कोख में सांस लेते बीज का धरती पर अंकुराता चेहराµइस रचनात्मक संघर्ष का साक्षी तो लेखक ही होता है। मन्नू भंडारी के उत्तर एक मनुष्य की ईमानदारी और एक रचनाकार की पारदर्शिता के प्रमाण हैं।
कई बार विचलित कर देने वाली जीवन-स्थिति पर बात करने पर रचनाकार मौन साध लेता है या बार-बार घेरे जाने पर झुंझला पड़ता है। मन्नू भंडारी के साथ ऐसा नहीं है। राजेन्द्र यादव से जुड़े कई संदर्भों में उन्होंने जिस संयम- शालीनता से सटीक उत्तर दिए हैं उन्हें गौर से पढ़ना चाहिए। ‘कितना दर्द सहा, जब मैंने तनिक कहा’µयह पंक्ति याद आ सकती है। शब्दों की दुनिया में रहने वाले हर व्यक्ति को मन्नू जी के साक्षात्कार पढ़ने चाहिए। प्रस्तुत पुस्तक एक ऐसे रचनाकार से संवाद है, जिसके शब्दों में जीवन धड़कता है।