कवि विचार नहीं व्यक्त करता, विचार को एक रूप देता है और वह रूप इसलिए देता है कि उस रूप को आप ग्रहण कर सकते हैं। संश्लिष्टता उस रूप से नहीं आती, जो कि चिंतक का विचार होता है। आइंस्टाइन की थ्योरी पढ़ लें या किसी दार्शनिक का लेख पढ़ें-क्योंकि उसकी मानसिकता, जिसे कहते हैं कि विकास-क्रम को उसने ग्रहण नहीं किया। यह विचार कहाँ से आ गया, इसलिए संवेदनशील होना चाहिए। अगर वह जीवन-दर्शन से जुड़ा है, चाहे जिस दर्शन से हो, अगर उसमें उसकी आस्था है और अगर वह समझता है कि जीवन का मर्म यही है, जिसको जीवन-दर्शन कहते हैं तो उसमें उसकी आस्था होती है।
-इसी पुस्तक से
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ISBN : 978-81-908204-7-9
Edition: 2009
Pages: 164
Language: Hindi
Format: Hardback
Author : Kedarnath Agarwal
Category: Interviews
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