Description
माँझी! न बजाओ वंशी
केदारनाथ अग्रवाल के जीवन और कविता दोनों में एक अनिंद्य प्रेम का भाव विराजता है। जो जीवन में है वह कविता की परिधि से बाहर नहीं है। जहां लोग दांपत्य प्रेम को जीते हुए अपने उत्तरवर्ती जीवन तक आकर ऊब का अनुभव करने लगते हैं, वहीं केदार जी आजीवन इस प्यार से बँधे-बिंधे रहे। हिंदी की काव्य परंपरा में प्रेम का अनूठा और अद्वितीय स्थान है पर है वह परकीया प्रेम से बँधा हुआ। आधुनिक कवियों में केदारनाथ अग्रवाल का एक विरल उदाहरण है जहाँ वे दांपत्य प्रेम में ही लौकिक-अलौकिक सुखों की अपूर्व व्यंजना कविताओं में संभव करते हैं। जमुन जल तुम जैसा संग्रह तथा अन्य संकलनों की प्रेम कविताएँ इस बात का प्रमाण हैं कि उन्होंने प्रेम को दांपत्य की सुखद अनुभूतियों और संवेदना से भरा है। छायावादियों में जो प्रेम लौकिक धरातल से ऊपर उठकर दार्शनिक उपपत्तियों में पर्यवसित हो गया था, सूफी कवियों के यहाँ जो प्रेम ईश्वरीय सत्ता से लगन का पर्याय बन गया है, वह केदारनाथ अग्रवाल जैसे प्रगतिवादी कवि के यहाँ लोक में उपलब्ध प्रेम की कर्मठ जिजीविषा का पर्याय है।
प्रेम केदारनाथ अग्रवाल की दिनचर्या का ही एक अंग रहा है। वह जीवन की मांसपेशियों में रुधिर की तरह प्रवाहित है। प्रेममय जीवन के सारे काम जीवन के काम हैं। कुरते में बटन नहीं लगी, ऊपर से वह फटा हुआ है, सारा घर अस्त-व्यस्त हो उठा है, न सोपकेस में साबुन, न तेल की एक बूँद, न खोजने से मिल पाता रूमाल, मेजपोश पर धूल, किताब पर प्याला, कॉपी पर औंधा रखा गिलास-कवि अधीर होकर संबोधित करता है पत्नी को कि घर सँवारने कब आओगी। घर की सारी शिष्ट सँवरन पत्नी की देन है-पत्नी जो प्रिय है, जिसके होने से जीवन है।
कभी ठाकुर प्रसाद सिंह ने ‘पाँच जोड़ बाँसुरी’ लिखकर रोमानी अनुभूतियों के प्रदेश में एक हलचल मचा दी थी। ‘वंशी और मादल’ के इस गीत को नवगीत के स्थापत्य में नवता के उन्मेष के रूप में देखा गया। गीत स्निग्धता के लिए जाने जाते रहे हैं, उनकी कोमल पदावलियों को केदारनाथ अग्रवाल ने अपने कवि-जीवन में एक अनिवार्य तत्त्व के रूप में ग्रहण किया है। आज भी हम उनकी कविताएँ पढ़ते हैं तो लगता है, माँझी कहीं दूर वंशी बजा रहा है और उसकी टेर हमारे भीतर सुनाई दे रही है। वह किसी कान्हा की बाँसुरी से कम नहीं है। जीवन में प्रेम हो तो समूची कविता मानवीय प्रेम की व्यंजना में बदल जाती है। केदार जी ने कविता में यही किया है।
यह संग्रह केदारनाथ अग्रवाल की श्रेष्ठ प्रेम कविताओं का एक गुलदस्ता है।