Description
अंतर्संबंधों की मजबूती से ही संस्कृति टिकाऊ बनेगी। कला और संस्कृति के माध्यम से ही यह प्रक्रिया संभव होगी। भाषायी अजनबीपन के कोहरे को मिटाने पर ही मानवीय सोच-संस्कार का क्षितिज विशाल बनेगा।
बहरहाल भाषायी कठमुल्लेपन को हटाकर हम हिंदी को सर्वभारतीयता का प्रतीक बनाना चाहते हैं । उसके लिए भाषायी भाईचारा पहले मज़बूत बने। उत्तर-दक्षिण का खुला संवाद इसका एक रास्ता है।
यह कृति मलयालमभाषी हिंदी लेखक डॉ० आरसु की साहित्यिक तीर्थयात्रा का परिणाम है। इसके पीछे एक विराट् लक्ष्य है। यह भाषायी समन्वय का कार्यक्षेत्र है। सुदूर दक्षिण के प्रांत केरल में रहकर कई साहित्यकारों ने अमर कृतियाँ लिखी हैं। उनकी कृतियाँ भी राष्ट्र भारती की संपदा हैं।
तकषी शिवशंकर पिल्लै, एस०के० पोट्टेक्काट्ट और एम०टी० वासुदेवन नायर को इस भाषा में कृतियाँ लिखकर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था । उनके समानधर्मी और भी कई कथाकार हैं।
सृजन-क्षण की ऊर्जा, उन्मेष और उलझन पर उनके विचारों से अवगत होने के लिए अब हिंदी पाठकों को एक अवसर मिल रहा है। दक्षिण भारत की एक भाषा के साहित्यकारों के साक्षात्कार पहली बार एक अलग पुस्तक के रूप में हिंदी पाठकों को अब मिल रहे हैं।
मलयालम के बीस कथाकारों के हृदय की नक्षत्रद्युति यहाँ हिंदी पाठकों को मिलेगी। कुछ विचारबिंदु वे अवश्य आत्मसात् भी कर सकेंगे। हिंदी भेंटवार्ता के शताब्दी प्रसंग में प्रकाशित यह कृति एक कीर्तिमान है। इस कृति के माध्यम से मलयालम और हिंदी हाथ मिलाती हैं। दक्षिण के हृदय को उत्तर समझ रहा है । यह सांस्कृतिक साहित्यिक समन्वय की एक फुलझड़ी है।