Description
मैत्रेयी पुष्पा को पढ़ते हुए मुंशी प्रेम चंद का वह अविस्मरणीय भाषण याद आता रहता है जिसमें उन्होंने सौंदर्य का मेयार बदलने का आह्नान किया था। मनोरंजन और बेचैनी के बीच एक निर्णायक रेखा खींची थी।मैत्रेयी ने सौंदर्य की व्याख्या नहीं की, उसका मेयार बदल दिया। ऐसे कथानक और पात्र कथा साहित्य में आए कि कुलीन तंत्र में भगदड़ मच गई।अनुभवों की रेशमी चादरों में लिपटे लोग भरोसा नहीं कर पाए कि यह जीवन इसी देश का है, ये पात्र इसी समाज के हैं। कायदन, मैत्रेयी की रचनाओं का समाजशास्त्रीय अध्ययन होना चाहिए। इस अध्ययन में इस पुस्तक में संग्रहीत 39 संवाद अनेक अर्थों में उपयोगी साबित होंगे।यहां मैत्रेयी उवाच की एक ऐसी छटा देखने को मिलेगी जिसमें उनका लेखक, विचारक, एक्टिविस्ट और स्त्रीविमर्श का रखुल कर बात करता है।इससे प्रश्नकर्ताओं और मैत्रेयी जी के बीच एक ऐसी विचारधारा बही है जिसमें पाठक भी स्वयं को रससिक्त पाएंगे।
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