‘मैं हूँ इक लम्हा’ जो सबके सामने अपने लफ़्ज़ों को इंद्रधनुषी सोच से सजाकर मन की बात रखता है। छोटी-बड़ी लहरों जैसे सोच का सैलाब उमड़ता है और कविता के रूप में कई भाव जन्म लेने लगते हैं। हर कविता का जन्म उसके अंदर छिपी किसी न किसी कहानी से होता है, कविता के साथ उस कहानी का जिक्र होना भी जरूरी है। अपने एक-एक लम्हे को खूबसूरत शब्दों के ताने-बाने में बुनकर हर कविता के जन्म के पीछे की कहानी को कहते हुए, इन्हें पुस्तक के रूप में संजोया है।
‘लम्हा बना है अनगिनत पलों से कह लेने दो,
लम्हा अजर-अमर है, इस मृग-तृष्णा में जीने दो!’