Description
लोक का अवलोकन
डॉ. सूर्यकान्त त्रिपाठी ने ‘लोक का अवलोकन’ नामक इस पुस्तक में लोकसाहित्य का विशेष रूप से लोकगीतों का विशद् अध्ययन प्रस्तुत किया है। काव्यमर्मज्ञों ने हमेशा लक्ष्य किया है कि लोकगीत चाहे जितने अनगढ़ हों लेकिन भावसंपदा बड़े-बड़े कवियों से होड़ करती है। डॉ. त्रिपाठी ने एक लोकगीत इस प्रकार उद्धृत किया है-
राम के भीजे मुकुटवा लखन सिर पटुकवा हो रामा। मोरी सीता के भीजे सेन्हुरवा लवटि घर आवह हो राम॥ डॉ. त्रिपाठी ने इस गीत का काव्य-सौंदर्य उद्घाटित करते हुए लक्ष्य किया है कि “मुकुट’ में राजबल, “पटुका’ में बाहुबल और ‘सेन्हुरवा’ में सौभाग्यनल का संकेत निहित है और इस गीत की सीधी-सादी भाषा भी व्यंजना के चमत्कार से पूर्ण है।
प्रस्तुत निबंध-संग्रह में कुछ निबंध सिद्धांतसम्मत, कुछ शोधपरक और कुछ मौलिक हैं। कुछ तो पत्र-पत्रिकाओं में छपे भी हैं और कुछ एकदम नए। किंतु, सभी लोकगंगा में स्नात हैं, आकंठ डूबे भी। आंचलिकता अथकवा क्षेत्रीयता के आग्रह से दूर ये निबंध अपने ढंग से लोक की बातें बयां करते हैं, फिर भी भोजपुरी वर्चस्व से नकार नहीं। लोक का ही चिंतन-मनन, लोक का ही अध्ययन-अनुशीलन और लोक के ही सुख-दुः/ख का निरूपण इन लोकरंगी निबंधों का वर्ण्य विषय है। आगे यह “लोक का अवलोकन” पाठकों को कितना लुभा पाएगा, यह तो उनकी प्रतिक्रियाएं ही बताएंगी।