Description
आलोचना की भाषा और रचना की भाषा एक नहीं हो सकती–इस मानने वाले लोग हैं लेकिन काशीनाथ सिंह ऐसे लेखक हैं जिनका प्रबल विश्वास है कि आलोचना भी रचना है । ‘लेखक की छेड़छाड़’ में उनके इस विश्वास के आधार देखे जा सकते हैं । काशीनाथ सिंह के मूल स्वभाव यहाँ भी देखा जा सकता है–बतकही, चुहल और मजे-मजे में जमाने भर की बात कह देना । वे अपने साथ चलने वाले समकालीनों के काम पर नजर डालते हैं तो अग्रजों को अघर्य भी देते हैं । उनके अपने कहानी लेखन के अंतरसूत्रों को जानना हो या अभी-अभी के नए कथा परिदृश्य का सिंघावलोकन, यहाँ सब मौजूद है । ‘अपना मोर्चा’ और ‘कशी एक अस्सी’ जैसे कालजयी उपन्यासों की रचना-प्रक्रिया में केवल शोधार्थियों की ही दिलचस्पी नहीं हो सकती और न ही लेखक की सामाजिक भूमिका पर बहस पर किन्हीं ख़ास पाठकों की। यह एक अनुपम गद्य सर्जक के ही बुते की बात है कि वह धूमिल जैसे कवि पर आलेख लिखता है तो गोदान का नए जमाने में महत्त्व भी खोज पाता है । यहां भी काशीनाथ सिंह की पहले दर्जे की गद्य सर्जन का आस्वाद लिया जा सकता है जो आलोचना, लेख, मूल्यांकन, समीक्षा या स्मृति लेख के रूप में आए हैं । यह लेखक की छेड़छाड़ तो है लेकिन इस छेड़छाड़ की व्यंजन गहरी है और मार दूर तक जाने वाली है ।