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Khamosh Nigahein / खामोश निगाहें

350.00 297.50

ISBN: 978-93-91797-93-5
Edition: 2022
Pages: 166
Language: Hindi
Format: Hardback

Author : Surender Kumar Malhotra

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Category:

Description

उपन्यास सें एक अंश

कंसल्टिंग-रूम में केवल एक महिला मरीज मौजूद थी जिसको डाक्टर बैनजी ने जल्दी से विदा कर दिया। इसके बाद बैनजी ने इन्टरकाम का बटन दबाया और फोन पर रिसेप्शनिस्ट मिस गुप्ता से कहा-“दो कप कॉफी मिस गुप्ता, और हां, नो पेशन्ट फार समटाइम। ”

“ओके सर।”

“बैंक्स।” रिसीवर रखते हुए बैनजी ने कहा। “क्या हम पहले केस को डिसकस कर लें बैनजी।” गौतम ने गम्भीर स्वर में कहा।

“हां, मैंने इसीलिए तुमको बुलाया था-सिगरेट?” सिगरेट-केस गौतम के सामने करते हुए बैनजी ने कहा। “नो थैंक्स। ” गौतम ने इनकार किया।

बैनजी ने खुद एक सिगरेट सुलगाई और मेज की दराज में से कुछ मेडिकल रिपोर्ट्स निकाल गौतम के सामने रख दीं। “मैं इनको देख चुका हूं, तुम भी देख लो, एवरीथिंग इज टोटली होपलेस। ” सिगरेट का एक कश खींचते हुए बैनजी ने कहा।

गौतम सामने रखी रिपोर्ट्स को उलट-पुलट कर देखता रहा। उसके मस्तक की रेखाएं गहरी होती गईं।

“तुम इस केस में क्या एडवाइज करोगे बैनजी?” गौतम ने पूछा।

“कैंसर क्या है गौतम तुमसे छिपा नहीं, इससे रिकवर कर सकने वाले पेशन्ट की परसेंटेज कितनी कम है यह भी एक डाक्टर होने के नाते तुमको मालूम है। केस जिस स्टेज में है इसमें मैं कोई ज्यादा उम्मीद की किरण तो दिखाई नहीं देती। लेकिन यदि मरीज मान जाए तो उसे इलाज के लिए बम्बई भेजने का प्रबन्ध हो सकता है। शायद मरीज ठीक हो जाए।”

“क्या इस हालत में मरीज को सच्चाई बता देना मुनासिब होगा?” गौतम ने भारी आवाज में पूछा।

“न बताने से भी क्या फर्क पड़ेगा? मृत्यु के अंधकार की तरफ बढ़ते हुए इनसान से सच्चाई ज्यादा दिन छिपती नहीं, वह स्वयं ही अपने भाग्य के बारे में जान जाएगा। “

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