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कवि ने कहा : विजेन्द्र / Kavi Ne Kaha : Vijendra

150.00 127.50

ISBN : 978-81-89859-81-7
Edition: 2008
Pages: 144
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Vijendra

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Category:

Description

कवि ने कहा : विजेन्द्र
विजेन्द्र हमारे समय के विशिष्ट और बडे समर्थ कवि हैं । उनमें नवीनता के साथ अपनी जातीय स्मृतियों को कविता से कलात्मक ढंग से गूँथने का विरल कौशल है । अतः वे कविता अपने समय की लिखकर अपनी महान् काव्य-परंपरा को भी अपने अंदर सहेजे-समेटे रहते हैं । निराला और त्रिलोचन की परंपरा में उन्हें देखने के पीछे एक तर्क यह भी है कि वे सृजन और व्यवहार को अलग-अलग नहीं मानते । उनका काव्य उनकी जीवनचर्या से अलग नहीं है । विजेन्द्र की गोता का खास गुण है कि वह अपने जनपद के भूगोल, परिवेश, प्रकृति, मानवीय क्रियाओं, अनुभवों तथा भाषा-मुहावरे के बिलकुल निकट हमें बार-बार ले जाते है । उनकी कविता हर बार मध्यवर्गीय सीमा को त्याग हमें-बहुत बडे मानवीय फलक से जोड़ती है । बल्कि कहें उसमें घुला-मिला देती है ।
विजेन्द्र एक अन्वेषणशील तथा प्रयोगधर्मी कवि है । जीवन और रचना की परिपक्वता के बावजूद ये दोनो बाते उनसे बराबर न पाई जाती हैं । उनकी कविता में एक ईमानदार नैतिकता और नए सौंदर्यशास्त्र का बोध हमें सदा होता रहता है । चाहे सुंदरता हो या बिना, विजेन्द्रअपनी कविताओं में बहुत ही सजगता से उन्हें व्यक्त करते है ।
विजेन्द्र की काव्य भाषा सदा नए विवाद उठाती रही है, क्योंकि यह लोक-चेतन कवि सदा भाषा के बने-बनाए ढाँचों को तोड़ता रहा है। उनकी भाषा लोक और जनपदों की और सहज भ्रमण करती है । इसलिए उनकी कविता में लोक संस्कृति की विकासोन्मुख छवियों और बिंब बराबर दिखाई पडते है । इससे विजेन्द्र की कविता का संसार व्यापक और विस्तृत ही नहीं हुआ, बल्कि उसमें अपने समय के बहुआयामी यथार्थ को कहने की शाक्ति भी पैदा हुई है ।
विजेन्द्र जैसे कवि की अनन्य सहजता अलग से पहचानी जाती है । इस कवि ने एक लंबी तनाव-भरी संघर्षपूर्ण यात्रा तय की है । उनके अब तक छपे दस संकलनों की कविताओं को मिलाकर पढ़ने से एक ऐसी रचना-प्रक्रिया से हमारा सामना होता है जो एक साथ बहुआयामी और विकसनशील है । ज्यों-ज्यों कवि उग्र और अनुभव में परिपक्व होता गया है उसकी संवेदना भी त्यों-त्यों अधिक सघन और समृद्ध होती गई है ।

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