Description
मस्जिद के ज़ेरे-साया इक घर बना लिया है
ये बन्दा-ए-कमीना हमसाया-ए-ख़ुदा है
—ग़ालिब
हुए इस क़दर मुहज़्ज़ब, कभी घर का मुंह न देखा
कटी उम्र होटलों में, मरे अस्पताल जाकर
०
बूढ़ों के साथ लोग कहां तक वफ़ा करें
लेकिन न मौत आए तो बूढ़े भी क्या करें
—अकबर इलाहाबादी
हुकूमत मुंह भराई के हुनर से ख़ूब वाक़िफ़ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है
—मुनव्वर राना
मुफ़्लिसी, भूख, मरज़, इश्क़, बुढ़ापा, औलाद
दिल को हर क़िस्म का ग़म हो तो ग़ज़ल होती है
—दिलावर फ़िगार
ऐसी जन्नत का क्या करे कोई
जिसमें लाखों बरस की हूरें हों
—दाग़
दफ़्तर में आ ही जाता हूँ कुछ वक़्त काटने
वैसे किसी के बाप का नौकर नहीं हूँ मैं
—टी.एन. राज़