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हिंदी साहित्य का इतिहास / Hindi Sahitya Ka Itihaas

900.00 765.00

ISBN: 978-93-85054-32-7
Edition: 2015
Pages: 520
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Dr. Hemant Kukreti

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Category:

Description

हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा छोटी लेकिन महत्त्वपूर्ण है। मिश्रबंधु, गार्सा द तासी, जॉर्ज ग्रियर्सन इत्यादि ने इस मजबूत इमारत के लिए नींव का काम किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डॉ- गणपति चंद्र गुप्त, डॉ- रामकुमार वर्मा, डॉ- हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ- रामविलास शर्मा, डॉ- नगेंद्र, डॉ- विजयेंद्र स्नातक, डॉ- बच्चन सिंह, डॉ- नंदकिशोर नवल,
डॉ- गोपाल राय ने इसे बुलंदियों तक पहुंचाया है। ये सब साहित्येतिहासकार अकादमिक क्षेत्र के बड़े नाम होने के साथ-साथ अनिवार्य महत्त्व के आलोचक भी रहे।
हेमंत कुकरेती भी दो दशकों से अधिक समय से अध्यापन कर रहे हैं। उन्होंने मुख्य रूप से आधुनिक कविता और नाटक के साथ-साथ हिंदी साहित्य का इतिहास अपने छात्रें को पढ़ाया है। हेमंत कुकरेती की केंद्रीय छवि एक कवि की है लेकिन वे परिश्रमी समीक्षक भी रहे हैं और आलोचना-कर्म को भी उन्होंने गंभीरता से लिया है।
हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन के लिए हिंदी साहित्य का अध्यापक, आलोचक या कवि होना कतई जरूरी नहीं हैµउसके लिए स्पष्ट इतिहास- दर्शन होना कतई अनिवार्य है। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि हेमंत कुकरेती के इस साहित्येतिहास
से गुजरते हुए यही महसूस हुआ कि उनके पास साहित्य के अतीत को देखने वाली गहरी दृष्टि, उसके वर्तमान की पड़ताल करने की ईमानदार तटस्थ निर्लिप्तता और भविष्य को भांपने की प्रतिभा है।
‘साहित्य के बेहतर इतिहास में तथ्यों का वस्तुनिष्ठ परीक्षण और पूर्वग्रहरहित विश्लेषण होता है।’ ‘महान साहित्य अपने समय के प्रश्नों और समाज से अलग नहीं होता और न रचनाकार का विवेक इतिहास से स्वायत्त होता है।’ ‘एक अच्छे इतिहास में भाषा और साहित्य की सांस्कृतिक परंपरा, लेखकीय रचनात्मकता का विश्लेषण, देशकाल वातावरण के द्वंद्व और घात-प्रतिघात का संतुलित विश्लेषण किया जाता है। इतिहास लेखन में विकासवादी नजरिया और वैज्ञानिक प्रस्तुति होनी चाहिए।’ हेमंत कुकरेती की ये उपर्युक्त पंक्तियां उनके साहित्य इतिहासबोध को स्पष्ट करती हैं।
यह अब तक प्रकाशित हिंदी साहित्य का सबसे अद्यतन इतिहास है। हिंदी गीत, गजल इत्यादि से लेकर पत्रकारिता, तमाम गद्य-विधाएं, स्त्री एवं दलित विमर्श एवं लेखन के विकास का विश्लेषण किया गया है। इस मायने में यह हिंदी साहित्य का इतिहास आचार्य शुक्ल, द्विवेदी जी, डॉ- रामविलास शर्मा इत्यादि की परंपरा को आगे बढ़ाता है।

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