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Himalaya Gaatha (7) Himachal Ke Lokgeet

990.00 700.00

ISBN: 978-93-83234-33-2
Edition: 2021
Pages: 536
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Sudarshan Vashishth

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Category:

Description

जीवन को आशा-निराशा, मिलन-विरह, सुख-दुःख, खुशी-गम-सभी भाव लोकगीतों के माध्यम से प्रस्तुत होते हैं। हास्य, श्रृंगार, करूण आदि जितने भी रस होसकते हैं, लोकगीतों में समाए रहते हैं। वर्षों पुरानी संस्कृति को ये गीत सहज भाव से उद्‌घाटित करते हैं। मानव समाज की भौगोलिक-ऐतिहासिक, पौराणिक-धार्मिक, नैतिक- आर्थिक, आध्यात्मिक-सामाजिक सभी प्रकार की प्रवृत्तियां लोकगीतों के माध्यम से स्पष्ट होती हैं। लोकगीतों में लोक की आत्मा बसती है। आत्मा बोलती है। गीत समाज की एक तसवीर सामने लाते हैं। ग्रामीणों के दिलों की धड़कन होते हैं लोकगीत जो कभी साज-बाज के साथ, कभी नृत्य के साथ तो कभी अकेले में ही जीवन में नया संचार करते हैं, नए प्राण फूंकते हैं। वैदिक परंपरा और विधि-विधान के साथ-साथ लोक परंपरा की धारा भी बहती है। समय के अनंतर लोकाचार का महत्त्व बढ़ता गया और यह वैदिक कर्मकांड के साथ-साथ समान रूप से चलने लगा। एक ओर तो पुरोहित वर्ग कर्मकांड के माध्यम से वेद का निर्वाह करते रहे तो दूसरी ओर साधारण जन लोकाचार के माध्यम से आगे बढ़ते रहे। लोकाचार में लोकगीतों की प्रमुख भूमिका बनी। लोकगीतों के माध्यम से ही संस्कृति की झलक मिलने लगी। जहां लोककवि ने सरल और सहज होकर काव्य रचना की, वहां वह गीत कालजयी हो गया। भावात्मकता, सरलता, गेयता की विशिष्टताओं के साथ लोकगीत निश्छल भाव से संस्कृति का उद्घाटन करते रहे।

बालक के जन्म, नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह आदि समस्त संस्कारों को क्रमबद्ध तरीके से ये गीत अपने ढंग से आगे बढ़ाते हैं।

संस्कार गीतों के अतिरिक्त ऋतु गीत भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। हर ऋतु, हर मास का गीत है। बारहमासा भी प्रसिद्ध है। अरण्यगायिकी में बिना किसी साज-बाज के अकेले मेंगीत गाए जाते हैं। जो गीत गायें चराते या भेड़ें चराते हुए गाए जाते हैं, उनमें लोक की आत्मा बोलती है। ऐसे गीतबच्चे-बच्चे की जुबान पर होते हैं। इन गीतों में भी लोक कवियों ने गहरे भाव भरे हैं। ऐसे गीतों को गाने के लिए किसी साज-बाज की आवश्यकता भी नहीं।

हिमाचल प्रदेश में बहुआयामी और बहुविध संस्कृति के दर्शन होते हैं। प्रदेश का प्रत्येक अंचल संस्कृति में एक-दूसरे से भिन्‍न है। शिमला, कुल्लू के गीत व नृत्य कुछ-कुछ मिलते हैं किंतु वेशभूषा एकदम अलग है। उधर सिरमौर का गायन व नृत्य एक अलग ही तान औरलय लिए हुए है। इसी तरह कांगड़ा और चंबा साथ-साथ होते हुए भी गीत-संगीत में अलग हैं। चंबा के जनजातीय क्षेत्र भरमौर की लय बिलकुल अलग है। प्रदेश में बारह जिले हैं जिनमें लोक संगीत व गायन अलग-अलग देखा जा सकता है।

लोकगीतों का अपार भंडार है। इसके संग्रहण के लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता है। बहुत से गीतों के बोल और तर्ज बदल गए हैं या बदल दिए गए हैं। पुराने तर्जों पर नए गीत बन गए हैं। पुराने गीतों को नए तर्जो में गाया जा रहा है।

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