बुक्स हिंदी 

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घंटा / Ghanta

160.00 136.00

ISBN : 978-93-82114-96-3
Edition: 2013
Pages: 96
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Pandey Bechan Sharma ‘Ugra’

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Category:

Description

पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हिंदी के आरंभिक इतिहास के एक स्तंभ, एक मील का पत्थर रहे हैं! ‘उग्र’ अपने नाम के अनुकूल उग्रता और विद्रोह के प्रतीक, विचारों में उग्रता और समाज के अन्याय-अत्याचार शोषण के प्रति विद्रोह। यही कारण है कि वे समाज और साहित्य में अकेले रहे। सिद्धांत पथ पर निरंतर दृढ़चरण रहे। “उग्र’ ने विवाह नहीं किया था, अतः उनकी कोई संतान नहीं थी जो अन्यान्यों की तरह अपने पिता पर काम करते, न कोई शिष्य वर्ग तैयार किया जो उनकी रचनावली, ग्रंथावली तैयार करता। ‘उग्र’ को हिंदी संसार समझा ही नहीं, पचासों चर्चित विवादास्पद उपन्यास, नाटक, कहानी-संग्रह, कविता-संग्रह के लेखक, अनेक ख्यात-जब्त पत्र-पत्रिकाओं के जनक-संपादक “उग्र’ एक संगठित आंदोलन के शिकार हुए, उपेक्षित रहे।।

भीड़ से अलग रहने वाले उग्र जी जहां अपनी सबलता और सद्गुणों की सीमा से अपरिचित नहीं थे, वहीं अपनी दुर्बलता और दुर्गुणों की आत्मस्वीकृति में भी संकोच नहीं करते थे-निश्छल-निर्मल हृदय, निष्पक्ष- निर्दलीय व्यक्तित्व और निर्भीक-निश्चिंत चिंतन! वे विचारों की धुंध में कभी नहीं पड़े और न अपने मनोभावों को वाणी देने में किसी सामिष भंगिमा का ही कभी आश्रय लिया। वे मन, वचन और कर्म से एक थे, महात्मा थे : ‘मनस्येक॑ वचस्येक ॑ कर्मण्येक॑ महात्मनाम्‌

प्रथित पत्रकार पराड़कर जी को गुरु मानने वाले उग्र जी वाराणसी के दैनिक ‘ आज ‘ में कंपोजिटर के नाते आए और आठ वर्ष तक उसमें “अष्टावक्र’ के नाम से लिखते रहे।

सही मानों में वे स्वयंभू साहित्यकार थे ; “कविर्मनीषी परिभू: स्वयंभू:’। हिंदी साहित्य में उग्र जी की प्रसिद्धि ‘चॉकलेट’ के कारण हुई।

पं. बनारसीदास चतुर्वेदी के सदृश वरिष्ठ पत्रकार ने उनके लेखन के खिलाफ ‘घासलेटी आंदोलन’ चलाया। उससे उग्र की उग्रता कम करने का षड्यंत्र हुआ, पर “उग्र’ इन छोटी-मोटी बातों से विचलित हो जाने वाले रचनाकार थे भी नहीं।

अत्यधिक प्रसन्‍नता है कि आज 77 वर्ष बाद “उग्र’ का यह ऐतिहासिक उपन्यास फिर से मूल्यांकन, निष्कर्ष, आलोचना-समालोचना के लिए पाठकों, विद्वानों, समीक्षकों-अन्वेषकों के हाथों में समर्पित करने, संपादन करने का सौभाग्य मिला-श्री राजशेखर व्यास को।

“उग्र” का यह उपन्यास अब दुष्प्राप्प-सा था। बड़ा श्रम-साध्य था उसे खोजना, उनके संपूर्ण साहित्य का आलोड्न-विलोडन करना। उनका जीवनवृत्त और फिर “उग्र’ जैसे महारथी के उपन्यास पर “दो शब्द!’ लिखना।

उग्र-साहित्य के समर्पित समाराधक राजशेखर व्यास के 35 वर्षों के अनवरत प्रयासों से आज “उग्र’ हिंदी में पनर्जीवित हो उठे हैं।

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