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एक और चन्द्रकान्ता-1 / Ek Aur Chandrakanta-1

245.00 208.25

ISBN : 978-81-7016-412-8
Edition: 2011
Pages: 200
Language: Hindi
Format: Hardback


Author : Kamleshwar

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Description

भारतीय दूरदर्शन के इतिहास में ‘चन्द्रकान्ता’ सीरियल है जो लोकप्रियता का कीर्तिमान स्थापित किया है, इसका श्रेय हिन्दी के अग्रणी उपन्यासकार बाबू देवकीनंदन खत्री को जाता है क्योंकि ‘चन्द्रकान्ता’ सीरियल के सुप्रसिद्ध लेखक कमलेश्वर का मानना है कि इसकी प्रेरणा उन्होंने खत्री जी से ही ग्रहण की है । खत्रीजी की प्रेरणा के महादान से संपन्न इस शीर्ष कथाकार ने जिम प्रकार उपन्यास से सीरियल को अलग किया था, उसी तरह सीरियल से एक और चन्द्रकान्ता की इस महागाथा को अलग करके प्रस्तुत किया है ।
‘एक और चन्द्रकान्ता’ के इस पाठ में हिन्दी पाठक एक बार फिर से अपनी भाषा तथा कथा के आदर्श तथा गौरवमयी अनुभव से गुजर सकेगा । कहा जा सकता है कि हिन्दी में यह रचना के स्तर पर एक प्रयोग भी है । लेखक के अनुसार यह “भाषायी स्तर पर एक विनम्र प्रयास है ताकि हिन्दी अधिकतम आम-फ़हम बन सके ।” हिन्दी कथा-परंपरा में किस्सागोई की मोहिनी को पुन: अवतरित करने में लेखक के भाषागत सरोकार और उपकार का यह औपन्यासिक वृत्तांत अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है।
चमत्कार, ऐयारी, फंतासी, बाधाएँ, कर्तव्य, दोस्ती, युद्ध-पराक्रम, नमकहरामी, बगावत, प्रतिरोध, साजिश, मक्कारी, तांत्रिक एवं शैतानी शक्तियाँ, वासना, वफादारी तथा अंधसत्ता आदि को बखानती और परत-दर-परत खुलती-बंद होती अनेक कथा-उपकथाओं को इस उपन्यास-श्रृंखला ने मात्र प्यार-मोहब्बत की दास्तान को ही नहीं बखाना गया है बल्कि इस दास्तान के बहाने लेखक ने अपने देश और समाज की झाडा-तलाशी ली है ।  यही कारण है कि कुंवर  वीरेन्द्रसिंह और राजकुमारी चन्द्रकान्ता की उद्याम प्रेमकथा को बारंबार स्थगित करते हुए लेखक को दो देशों की परस्पर शत्रुता के बीच संधि की कोशिश को शिरोधार्य करता प्रतीत होता है तो वहीं भ्रष्टाचार, राष्ट्रद्रोह को प्रतिच्छाया वाली उपकथाओं के सृजन में व्यस्त दीखता है । समय के साथ निरंतर बहने भी रहने वालो ‘एक और चन्द्रकान्ता’ को इस महाकथा में महानायकों का चिरंतन संघर्ष यहाँ मौजूद है, उनका समाधान नहीं।  अर्थात यह एक अनंत कथा है जो यथार्थ और कल्पना की देह-आत्मा से सृजित और नवीकृत होती रहती है । कहना न होगा कि यह हिन्दी की एक समकालीन ऐसो ‘तिलिस्मी’ उपन्यास-श्रृंखला है जो हमारे अपने ही आविष्कृत रूप-स्वरूप को प्रत्यक्ष करती  है । इस उपन्यास-श्रृंखला  के सैकड़ों बयानों की अखण्ड पठनीयता लेखक की विदग्ध प्रतिभा का जीवंत साक्ष्य है ।
यदि इस लेखक की सामाजिक प्रतिबद्धता क्रो बात पर ध्यान दें तो ‘एक और चन्द्रकान्ता’ उसकी सम्यक लेखकीय ‘जवाबदेही’ का साहसिक उदाहरण है । अपने अग्रज-पूर्वज उपन्यासकारों का ऋण स्वीकार करते हुए, स्पर्धाहीन सर्जन की ऐसी बेजोड़ मिसाल आज अन्यत्र उपलब्ध नहीं है । दूसरे शब्दों में, कमलेश्वर का हिन्दी साहित्य में यह एक स्वतंत्रता संग्राम भी है जिसमें आम हिन्दी को सुराज सौंपने का सपना लक्षित है ।

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