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Dushyant Kumar Rachnawali-1 (Paperback)

600.00 480.00

ISBN: 978-81-7016-734-1
Edition: 2022
Language: Hindi
Format: Paperback

Author : Ed. Baldev Vanshi

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Category:

Description

वह बीमार आदमी नहीं था। न तन से, न मन से, न आदत से। बेहद हँसमुख था। अलमस्त, बेफ़िक्र, तनाव को गर्द की तरह झाड़ देना वह जानता था। वह वर्तमान की पीड़ा समझता था। उसे आने वाले दिनों पर आस्था थी।-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना


वो बहुत ही ज्यादा गाँव से जुड़ा हुआ आदमी था, जिसे कुछ हद तक क्रूड भी कहना चाहिए और कुछ क्षण ऐसे भी जिसमें नफ़ासत की पराकाष्ठा दिखे। वो जो इतना लड़ने वाला था, इतना बेचैन, इतना फितरती, फिर भी कोई चीज है, जो उसे इस तरह साधे हुए है। -राजेन्द्र यादव


हर ऐसे मोड़ पर जब हम यह समझते हैं कि ग़ज़ल अब ख़त्म हो गई तो एकाएक एक नया कवि आता है और वह नए स्वर और नई अभिव्यक्ति के साथ अपनी चीजें लाता है। मसलन, इधर दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लें आईं। -शमशेर बहादुर सिह


आखिर क्या था उन ग़ज़लों  में, जो इस तरह इतनी गहराई में झकझोर गया। सबसे बड़ी बात यह कि वे एक ऐसे आदमी की प्रामाणिक पीड़ाभरी आवाज थीं, जो अपने इस मुल्क को, अपनी इस दुनिया को बेहद प्यार करता रहा है। एक सच्ची और तीखी, अकेली छूटी हुई रचना, झूठे शब्दजाल के विराट काव्याडंबर को कैसे पल-भर में नक़ली और जाली साबित कर अपने को प्रतिष्ठित कर लेती है, इसका प्रमाण दुष्यन्त की गज़लें  हैं। -धर्मवीर भारती


दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों  ने एक बड़ी और ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, और वह है सांस्कृतिक और इंसानी मूल्यों के एकीकरण और भाषायी सरमाए के साथ लाने की भूमिका। इन ग़ज़लों ने हिंदी और उर्दू की जुदा कर दी गई विरासत को जोड़ा है। यही काम प्रेमचंद ने किया था, जब वे उर्दू की आमफहम सादगी से लेकर संस्कृतनिष्ठ हिंदी के मैदान में उतरे थे। नाजिम हिकमत, पाब्लो नेरूदा की कविताएँ अपने देशों में जो और जितना कर सकीं, उससे कहीं ज्यादा दुष्यन्त की ग़ज़लों ने भारतीय लोकतंत्र को बचाने में की है। -कमलेश्वर

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