Description
दिल को मला करें है
हिंदी बहुत कम लेखकों ने जीवन के रग-रेशे को इतना करीब से बनते-बनाते, बिगड़ते-सँवरते देखा है, जैसा कि विष्णुचन्द्र शर्मा ने । प्रस्तुत उपन्यास आदि से अंत तक मनुष्य जीवन-संघर्ष की गाथा है, जिसमें दुख सुख है, राग है, विराग है, हर्ष है, विषाद है । जीवन तमाम उतार-चढाव अपनी संपूर्णता में व्यक्त हुए है ।
‘दिल को मला की है’ स्मृति-आख्यान है। लेखक ने अपनी पत्नी के अवसान के बाद कलम-कागज से जुगलबंदी की, जिसका सुफल है यह औपन्यासिक कृति । पली की मृत्यु के बाद घर-आँगन, रसोई-बगीचा कैसे बिखरता है, दरो-दीवार कैसे टूटती है, बिलखती है ! उपन्यास का कथाक्रम ठीक मनुष्य के जीवन की तरह है । किसी आत्मीय जन का हँसते-बतियाते ‘टुक’ चुप हो जाना या ऐसी यात्रा पर निकल जाना, जहाँ से वापसी संभव नहीं, निस्संदेह शोक का कारण बनता है लेकिन बकौल उपन्यासकार इसी शोक से जीवन का राग फूटता है ।
पत्नी की स्मृतियों को खँगालते तथा डरो-दिवार में उसकी तलाश करने के क्रम में ढेरों पात्रों की जीवंत उपस्थिति उपन्यास की रोचकता बढाती है । सरि पात्र जस के तस । बिना किसी शाब्दिक बुनावट के। मनुष्य मात्र मनुष्य होता है देवता या राक्षस नहीं। जिजीविषा ही उसकी पहचान है । काल भैरव, सादतपुर से लेकर यूरोप तक स्थितियाँ तथा विडंबनाएँ एक हैं, पर कोई भी पात्र निराश या हतोत्साहित नहीं दिखता ।
–शहरोज़
Reviews
There are no reviews yet.